कवि रामधारी सिंह दिनकर जी कहते हैं कि प्रकृति के भीतर या स्वयं प्रकृति में बहुत साड़ी धन - संपत्ति भरी पड़ी है। उद्यमी मनुष्य को यह सहज की प्राप्त है। कवि कहता है कि ईष्वर ने साड़ी सुख - संपत्ति के साधन धरती के अंदर छिपा दिए है। यह संपत्ति को केवल उद्यमी नर ही खोज सकते हैं।