सवार स्वयं वज़ीर अली था। वह एक जाँबाज़ सिपाही था। जंगलों में धूल उड़ाता हुआ घोड़े पर सवार बिना किसी सिपाही के जाँबाज वज़ीर अली अकेला ही अंग्रेज़ी खेमे में आ पहुँचा। इस प्रकार वज़ीर अली स्वयं ही घोड़े पर सवार होकर आया और कर्नल से कारतूस लेने में सफल रहा।