‘सीता जी को कुटिया ही राजभवन की तरह लग रही है। क्योंकि उनके प्राणेश उनके साथ हैं, देवर लक्ष्मण भी सचिव की तरह प्रहरी बने हुए. है। इसके अलावा प्राकृतिक सौन्दर्य ने उनको मोह लिया है। सीताजी स्वावलम्बी बनी हुई हैं.। प्रकृति के कण-कण को सीता जी ने राजभवन के सुख-वैभव के रूप में अपना लिया है।