समाज के दो पहलू मिहिर एवं मोरपाल दोस्त थे। दोस्ती इतनी घनी थी कि खाने की चीज़ भी आपस में बाँट लेते थे। मोरपाल गरीब घराने का लड़का है। उसके माँ-बाप खेत-मजूरी करते थे। घर में उसे कमर तोड़ मेहनत है। फिर भी वह रोज़ स्कूल आना पसंद करता है। पंद्रह किलोमीटर दूर किसी गाँव से रोज़ साइकिल चलाता स्कूल आता था। रोज़ छाछ का डिब्बा लेकर आता था। स्कूल आकर लेखक (मिहिर) का राजमा-चावल बडी चाव से खाता था। क्योंकिक्यों उसने पहले कभी यह देखा ही नहीं।हीं स्कूल के प्रति उसका लगाव कुछ खास है इतना कि बिना नागा रोज़ स्कूल आता था। रविवार की छुट्टी का दिन उसके लिए हफ़्ते का सबसे बुरा दिन था। किसी शादी में भी स्कूल के नीली-खाकी यूनीफॉर्म पहनते दिखाई पड़ता था। बेचारे के पास जो कमीज़पैंट का एक ही जोड़ा था, वह नीली-खाकी यूनीफॉर्म था। मोरपाल का स्कूल आठवीं के बाद छूट जाता है। वह आज भी अपने पिता की तरह वहीं खेती-मजूरी करता है।
मिहिर पांडेय धनी परिवार का है। घर मे सारी सुविधाएँ हैं। वह स्कूल जाने से रोया करता था। रोज़ नए बहाने बनाता था। स्कूल से इतना नफ़रत करता था कि अगर स्कूल के रास्ते में पानी भर जाने के कारण स्कूल की छुट्टी हो जाए तो घर में वह नाचता रहता था। उसे स्कूल की नीली-खाकी यूनीफॉर्म से घृणा थी। उसे पहनना हमेशा टाल देता था। स्कूल में बिताए समय को वह अपने बचपन का सबसे खराब समझा जाता था। अपने राजमा-चावल के बदले मोरपाल का छाछ का डिब्बा अपना लेता था।
समाज के दो विभिन्न पहलुओं को मिहिर और मोरपाल के माध्यम से हमारे सामने पेश किया है। मोरपाल के लिए घर में कोई सुविधा नहीं है, फिर भी वह पढ़ना चाहता है। जबकि मिहिर के लिए सुविधा होते हुए भी स्कूल जाना पसंद नहीं करता। स्कूल एवं यनीफॉर्म से गहरा प्यार रखते हुए भी मोरपाल को आठवीं से स्कूल छोडना पडता है और वह पिताजी की तरह खेतीमजूरी करने को विवश होता है। मगर विशेष रुचि न रखते हुए भी मिहिर ऊँचे पद पर पहूँचता है। यहाँ सामाजिक असमता का तस्वीर खींचखीं लिया है।