गंगी : रिवाज़ी पाबंदियों पर विद्रोह की आवाज
गंगी प्रेमचंद की की विख्यात कहानी ‘ठाकुर का कुआँ’ की पात्र है। वह एक साधारण गृहिणी है। गरीब परिवार की सदस्या है। जाति से निम्न वर्ग की है। वह कई प्रकार की सामाजिक कुरीतियों की शिकार है। पति बीमार है। वह पानी के लिए तरसता है। लेकिन पीने के लिए केवल बदबूदार पानी है। यह पानी पिलाने को गंगी तैयार नहीं है। वह सारी पाबंदियों को तोड़कर, ठाकुर के कुएँ से पानी भर लाने का साहस करती है। रात के अंधेरे में वह पानी लेने जाती है। उसकी चिंताएँ उसके मन के विद्रोह को व्यक्त करी हैं। अंत में वह कुएँ के जगत तक आ जाती है। उस समय उसका मन एक विजेता जैसा अनुभव करता है। लेकिन परिस्थितियाँ उलटती हैं, ठाकुर जग जाते हैं और गंगी को विवश भागना पड़ता है। गंगी एक ही समय परिस्थितियों से विवश औरत, विद्रोह मन रखनेवाली नारी एवं षांत के प्रति प्यार रखनेवाली गृहिणी आदि का प्रतिनिधित्व करती है।