गज़ल गायक – अब्दुलजब्बार
मोहनराकेश का यात्राविवरण ‘दिशाहीन दिशा’ के एक प्रभावशाली व्यक्ति है बूढ़ा मल्लाह श्री अब्दुल जब्बार । भोपाल-ताल की सैर में लेखक और मित्र का उनका परिचय होता है। हमेशा खुशमिज़ाज दिखाई पडनेवाला और सादा जीवन बितानेवाला था। दाढ़ी के ही नहीं छाति के भी बाल सफेद हो चुके थे। सर्दी के मौसम में भि सिर्फ तहमद लगाए आया था। भोपाल-ताल का नाविक अब्दुलजब्बार रात -दिन मेहनत करता रहता है। जब वह चप्पू चलाने लगता तो उसकी मांसपेशियाँ इस तरह हिलती जैसे उनमें फौलाद भरा हो । जब अविनाश गाने का आग्रह प्रकट किया तो बिना हिचक के तीन गज़ले छेड देता है। उसका गला काफ़ी अच्छा था। गज़लों से वह इतना परिचित था कि सुनाने का अंदाज़ भी शायराना था। कभी कभी नाव खोते समय चप्पुओं को छाड़े झूमझू - झूमकर झू गज़लें सुनाता था। असल में जब उसने गज़ले समाप्त की, वातावरण ही बदल गया था। अविनाश के अनुसार गालिब की चीज़ पेश करने को कहता है, तुरंत ही बिना एतराज के विनय के साथ गज़लें गाने लगा। मोटे तौर पर वह खुशमिज़ाज, विनयशील गरीब गज़लगायक अब्दुल जब्बार लेखक और मित्र के लिए उस रात अविस्मरणीय पात्र रहा।