बाल मजूरी पर तीखा प्रहार करनेवाली कविता – बच्चे काम पर जा रहे हैं
बच्चे काम पर जा रहे हैं श्री राजेश जोशी की कविता है। इसमें कवि ने मनोवैज्ञानिक ढंग से बच्चों की दुनिया पर नज़र डालते हैं। कवि कहते हैं कि बच्चे काम पर जा रहे हैं। वह भी ऐसे समय में जब रास्ता कोहरे से ढका हुआ है। उन्होंनेन्हों पाठकों से कुछ प्रश्न करते हैं-क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने?, क्या दीमकों ने खा लिया है | सारी रंग-बिरंगी किताबों को?, क्या अंतरिक्ष में गिर गई है सारी गेदे?, क्या किसी भूकंप में ढह गई है / सारे मदरसों की इमारते? और क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन खत्म हो गए हैं एकाएक? ऐ प्रश्न बहुत नुकीले हैं। इन प्रश्नों के माध्यम से कवि कहते हैं कि बचपन खिलौनों से खेलने, किताबों की दुनिया में घूमने, स्कूल में पढ़ाई करने का समय है। ऐसे समय में बच्चों का काम पर जाना बहुत भयानक समस्या है।
कवि प्रश्न करते हैं कि बच्चों के काम पर जाने का कारण क्या है? विश्लेषण करने से हमें मालूम हो जाएगा कि मूल कारण गरीबी है। गरीबी से बचने के लिए बच्चों को भी काम पर जाना पड़ रहा है। अशिक्षित माँ-बाप भी इसका कारण हो सकता है। यह कविता कुछ नुकीले प्रश्न हमारे सामने रखती है। ये प्रश्न हमें बाल मजूरी पर सोचने को विवश करते है।