भावार्थ - यह पद विरह वेदना की अद्भुत कृति है. राग मल्हार में आबद्ध इस पद में सूरदास जी ने कृष्ण से विलग हुई गोपियों की विरह वेदना का सजीव चित्रण किया है. अक्रूरजी जब बलराम के साथ श्रीकृष्ण को भी मथुरा ले गए तब गोपियां विरहग्रस्त हो गई. सूरदास के पदों में गोपियों का विरह भाव स्वष्ट झलकता है. इस प्रसिद्ध पद में कृष्ण के वियोग में गोपियों की क्या दशा हुई, उसी का वर्णन सूरदास ने किया है.
कृष्ण को संबोधन देते हुए गोपियां कहती हैं कि हे कन्हाई! जब से तुम ब्रज को छोडकर मथुरा गए हो, तभी से हमारे नयन नित्य ही वर्षा के जल की भांति बरस रहे हैं अर्थात् तुम्हारे वियोग में हम दिन-रात रोती रहती हैं. रोते रहने के कारण इन नेत्रों में काजल भी नहीं रह पाता अर्थात् वह भी आंसुओं के साथ बहकर हमारे कपोलों (गालों) को भी श्यामवर्णी कर देता है.
हे श्याम! हमारी कंचुकि (चोली या अंगिया) आंसुओं से इतनी अधिक भीग जाती है कि सूखने का कभी नाम ही नहीं लेती. फलत: वक्ष के मध्य से परनाला-सा बहता रहता है. इन निरंतर बहने वाले आंसुओं के कारण हमारी यह देह जल का स्त्रोत बन गई है, जिसमें से जल सदैव रिसता रहता है. सूरदास के शब्दों में गोपियां कृष्ण से कहती हैं कि हे श्याम! तुम यह तो बताओ कि तुमने गोकुल को क्यों भुला दिया है.