मनुष्य का जीवन मुख्य रूप से दो मनोभावों पर आधारित होता है- दुख और सुख। शेष सभी मनोभाव इन्हीं दोनों मूल भावों के अंतर्गत समाहित होते हैं या कहा जा सकता है कि इन्हीं के विविध रूप होते हैं। मनुष्य के जीवन का सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि जब जीवन में सुख आता है, तब वह उसे अपने अच्छे कर्मों का फल मानता है। इसके ठीक विपरीत जब जीवन में दुख, कष्ट, रोग, शोक का आगमन होता है, तब बड़ी सहजता से वह बोल देता है कि भगवान ना जाने क्यों अप्रसन्न हैं, जाने किस बात का दंड दे रहे हैं।