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प्रथम वर्ग के तत्वों के लिए अभिक्रियाशीलता का बढ़ता हुआ कर्म इस प्रकार है -
Li lt Na lt K lt Rb lt Cs जबकि वर्ग 17 के तत्वों का कर्म F gt Cl gt Br gt I है । इसकी व्याख्या कीजिये ।

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वर्ग 1 के तत्वों विधुत धनात्मक तत्व होते है तथा संयोजी इलेक्ट्रान को त्यागकर एकल धनात्मक धनायन बनाते है । इनकी क्रियाशीलता आयनन एन्थेलपी के मान पर निर्भर करती है । यदि आयनन एन्थेलपी का मान कम है तो क्रियाशीलता अधिक होती है । चूँकि वर्ग में नीचे जाने पर , आयनन एन्थेलपी का मान घटता है , अतएव प्रथम वर्ग के तत्वों की क्रियाशीलता वर्ग में नीचे जाने पर बढ़ती है ( अर्थात इस कर्म, Li lt Na lt K lt Rb lt Cs )। दूसरी और , हैलोजन विधुत ऋणात्मक तत्व होते है तथा एक इलेक्ट्रान को ग्रहण क्र एकल ऋणात्मक ऋणायन बनाने की प्रवृत्ति रखते है । यह प्रवृत्ति इलेक्ट्रोड विभव के मानो पर निर्भर करती है । इलेक्ट्रोड विभव का मान जितना अधिक होगा, क्रियाशीलता उतनी अधिक होगी । वर्ग 17 में नीचे जाने पर इलेक्ट्रोड विभव के मान घटते है । इस कारण वर्ग में नीचे जाने पर हैलोजन की क्रियाशीलता घटती है (अर्थात इस कर्म में , F gt Cl gt Br gt I )।

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