राजा बहुत बुढ़ा हो गया था। उसके संतान भी नहीं थी । कुछ समय के बाद राजा की मृत्य हो गई और राज्य का सारा भार मंत्री पर आ गया। मंत्री भी बहत बुढे थे। वे भी राज-काज से छुटकारा पाना चाहते थे। इसलिए मंत्री ने किसी चतुर व्यक्ति के हाथ में राज-काज सौंपने का निर्णय लिया, पर ऐसा कोई व्यक्ति उन्हें नहीं मिला। एक दिन महल के पीछे वाले सरोवर में उन्होंने एक हंस और हंसिनी का बार्तालाप सुना। इससे उन्हें अपनी समस्या का हल मिल गया। हंसिनी के सुझाव के अनुसार, मंत्री ने देश की प्रजा के हाथ में राज-काज सीपने का निश्चय किया। उन्होंने देश में एक विचार सभा रथापित को। इसमें प्रजा से चुने हुए तीन-सी लोग रखे गए। देश की कुल तीन करोड़ की आवादी थी। एक लाख की आवादी से एक व्यकताि चुना गया। इन तीन सौ लोगों द्वारा देश का एक मुखिया चुना गया। उसने अपनी मदद के लिए विचार सभा से चार व्यक्ति चुने। ये पाँचों ब्यक्ति राज-काज चलाने लगे। इनके कार्यों पर विचारसभा निगरानी रखती थी। विचारसभा को कानून बनाने का अधिकार दिया गया था। इस तरह मंत्री ने प्रजा को देश का राज-काज सौंप दिया और स्वयं राज काज से मुक्त हो गए