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प्रस्तुत पाठ के आधार पर रवींद्रनाथ जी की स्वभावगत विशेषताएँ लिखिए ।

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रवींद्रनाथ जी जब अपनी शारीरिक अस्वस्थता के कारण श्रीनिकेतन रह गये तब लेखक उन्हें मिलने जाया करते थे । शारीरिक अस्वास्थय के बावजूद भी वे हमेशा लेखक व्दिवेदी जी का स्वागत मुस्कुराकर करते थे पर अनुचित समय पर आने वाले दर्शनार्थियों से वे कुछ भिन्न - भिन्न से रहते थे । मिलने आने वाले बच्चेों से बचपने की छेड़छाड़ करते थे । इस तरह से परिचित लोगों के साथ और बच्चों के साथ वे अपनापन और खुशी महसूस करते थे किंतु जो अपरिचित दर्शनार्थी समय - असमय का ध्यान न रखते हुए या उनके स्वास्थय - अस्वास्थ्य का परिचय किये बिना ही उनसे मिलना चाहते थे , उनसे रवींद्रनाथजी डरे - डरे रहते थे । उनसे मिलने से बचना चाहते थे । वह शांत ओर एकांत वातावरण में रहना पसंद करते थे ।
रवींद्रनाथ जी प्राणीमात्र से बहुत आत्मीयता से पेश आते थे । उनका एक पालतू कुत्ता उनसे बहुत स्नेह रखता था । रवींद्रनाथ जी ने उस कुत्ते को इतना स्नेह दिया था कि वह एक दिन रवीद्रनाथ जी को शांतिनिकेतन मे पाकर बहुत व्याकुल हो गया । उसने ने जाने कैसे पता कर लिया कि वे श्रीनिकेतम रहने गये हैं और वह श्रीनिकेतन में गुरुदेव के पास जाकर खड़ा हो गया । आश्चर्यचकित रवींद्रनाथ जी ने जब कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा तब रवींद्रनाथ जी के स्नेहभरे स्पर्श से कुत्ते को अपार संतोष हुआ । उस मूक प्राणी ने भी गुरुदेव रवींद्रनाथ जी के भीतर बैठे सह्रदय और सस्नेह मनुष्य को पहचान लिया था ।

ामदे में रोज फुदकती हुई लंगड़ी मैना की चाल में रवींद्रनाथ जी को करुणाभाव दिखाी दिया था । उसकी बदली हुई चाल रवींद्रनाथ जी पहचान गये थे । इस तरह रवींद्रनाथ जी को मूक पक्षियों की मनोस्थिति का अनुमान सहज हो जाता था क्योंकि वे मूक पशु - पक्षियों से हृदय से लगाव रखते थे ।
आश्रम के बगीचे में कौओं का अचानक से न होना रवींद्रनाथ जी ने अपने बारीक लक्ष्य से महसूस किया था । लेखक तथा उनके अन्य अध्यापकों ने इस बदलाव पर इतना गौर नहीं किया जितना कि रवींद्रनाथ जी ने । इससे रवींद्रनाथ जी की सूक्ष्म नजर और शांतिनिकेतन में होने वाले हर मूक - अमूक जीवों से आत्मीय लगाव की पहचान होती हैं ।
इस प्रकार , रवींद्रनाथ जी की महानता और अन्य सस्नेह वृत्ती के स्वभाव विशेष इस पाठ में लेखक व्दिवेदी जी ने दर्शाये हैं ।

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