विवेकानंद जी देश के युवकों से ह्रदयवान बनने का आग्रह करते है । वे कहते है कि हमारे करोड़ो देशवासी सदियों से पराधीनता सहते - सहते पशुतुल्य हो गए है । करोड़ो लोग आज भूखे मर रहे है । अज्ञान के बादलो ने देशवाशियो के मन -मस्तिष्क को ढककर रखा है । यदि देश की पराधीनता और भूखे से मरने वाले देशवाशियो की पीड़ा देखकर हमारा ह्रदय व्यथित होता है तो देशवासियो के प्रति यह हमारी सह्दयता का प्रतीक है वह सह्दयता देशभक्ति की पहली सीढ़ी है देशभक्ति का यह भाव जागने पर व्यक्ति अपने नाम, यश और सम्पत्ति को भी भूल जाता है इस प्रकार, विवेकानद जी ने स्वदेशभक्ति के सम्बन्ध में देशवासियो के प्रति सह्दयता का आदर्श प्रस्तुत किया है