एक घायल सैनिक की आत्मकथा
दादी की बिमारी के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती पड़ा बगल के कमरे में जोर से कराहटों की आवाज सुनाई दी । मैंने देखा तो एक नौजवान घायल अवस्था में दर्द की मारे कराह रहा था । मैंने हमदर्दी जताई तो वह अपनी जुबान से अपनी कहानी बयान करने लगा । मुझे पता चला कि वह कोई आम ,नौजवान नहीं था, बल्कि अपने देश के लिए सीमा पर दुश्मनो से मुकाबला करते समय बुरी तरह से घायल हुआ जवान था । वह कहने लगा, ' मैं एक घायल सैनिक हूँ । अपने देश की सुरक्षा करते समय मुझे गोली लगी और में घायल हो गया । जैसे - जैसे अन्य जवान मुझे छावनी में लेकर आए, लेकिन मुझे गर्व है कि मैं देश के कुछ काम तो आ पाया हूँ । हमारे देश के दुश्मन देश पर आक्रमण कर रहे थे मैंने अपनी जान की परवाह न करते हुए उनसे मुकाबला किया । कई दुश्मन सैनिको को मैंने घायल किया और उनसे मुकाबला लिया । कई दुश्मन सैनिको को मैंने घायल किया और कुछ को मार भी डाला । उनसे लड़ते हुए अगर मैं मर भी जाता तो भी मुझे कोई गम नहीं था बल्कि फक्र होता कि मेरी जान के लिए समर्पित हो गई
मैंने बचपन में ही सैनिक बनने की ठान ली थी, मुझे भी उन स्वांतत्र्य वीरो की तरह बनना था जिन्होंने देश की आन-बान-शान के लिए अपने आपको न्योछावर किया । कई कठिनाइयों से गुजरकर जख्मो को झेलकर देश को आजादी दिला दीं ।
जब मैं सैनिक बन गया तब मेरा परिवार थोड़ा भावुक हो गया, किन्तु उन्हें मुझ पर फक्र भी था, लेकिन वे यह भी चाहते थे कि मैं अपने देश की सेवा करूँ, देश की सुरक्षा करूँ । मेरे परिवार के लिए अपने खुद के बेटे से बढ़कर देश के अन्य सपूतो और उनके परिवारों की रक्षा अधिकतम मायने रखती है । वैसे मेरे लिए मेरा देश ही मेरा परिवार है और उनकी रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी है । उसकी खातिर अगर मुझे अपने प्राणो की बलि भी चढ़ानी पड़े तो मेरे लिए वह सौभाग्य की बात होगी ।
मेरे घायल होने से मेरा शारीरिक दर्द बाद गया है । शायद कई दिनों के लिए मुझे दुश्मनो से लड़ाई करना मुमकिन भी न हो मगर मैं उम्मीद करता हूँ कि में जल्द ही ठीक हो जाऊं और देश की सीमा पर दुश्मनो के सामने फिर से सीना तान के खड़ा रहूँ । घायल होने पर मेरे जख्म या उनकी निशानियाँ मुझे मेरा फर्ज निभाने का हौसला और भी बढ़ाती है मेरी हिम्मत और मानसिक ताकत को और भी बुलंद करती है ।
इसके पहले भी मेरी ऐसी स्थिति रही है । मैं एक घायल शेर की तरह देश के दुश्मनो के लिए और भी खतरनाक हो चुका हूँ मेरा घायल होना मेरी कमजोरी न समझी जाए । मैं इसी देश की मिटटी का बना हूँ । मैं पहाड़ हूँ मैं पत्थर हूँ मैं किनारो से जूझती - टकराती, हुई एक लहार हूँ । मेरा घायल होना मेरी हार नहीं ।
बस सरकार से मेरी एक गुजारिश रहेगी कि मुश्किलों के समय में अगर मैं अपने परिवार को संभालने में नाकामयाब रहा तो सरकार मेरे परिवार कि जिम्मेदाई उठाए ।
अब मेरी कोशिश और जिद यही रहेगी कि जब मैं जल्द ही ठीक होकर वापस सीमा पर दुश्मनो से मुकाबला करने लौटूँ तो पहले से भी अधिक दुश्मनो को मार गिराऊं और अपने देश के तिरंगे को फक्र से लहराता हुआ देखूँ ।
घायल सैनिक की बुलंद जुबानी सुनकर मेरे तो रौंगटे खड़े हो गए और मेरी हिम्मत भी बाद गई ऐसे देशभक्त सैनिको के परिवारों के लिए करने की अब मैंने ठान ली है । ये मेरा भी देश के लिए एक छोटा सा योगदान रहेगा ।