(i) प्रायोगिक व्यवस्था का आरेख-हर्ट्ज है। यहाँ `X_(1)`, व `X_(2)` दो धात्विक प्लेटें हैं जो पीतल के छड़ों `R_(1)` एवं `R_(2)` से इस प्रकार जुड़ी होती हैं कि इनके मध्य वायु गैप बन जाये।
दोनों छड़ों का संबंध प्रेरण कुण्डली C के द्वितीयक कुण्डली से होता है, जिससे उनके मध्य उच्च विभवान्तर (High Voltage) आरोपित किया जा सके। संसूचक D वृत्तीय तार का बना होता है, जिसमें छोटा सा वायु गैप होता है।
(ii) प्रायोगिक निष्कर्ष -प्रेरण कुण्डली की सहायता `R_(1)` व `R_(2)` के मध्य कई हजार वोल्टे के कर्म का उच्च विभवान्तर लगाने पर गैप P की वायु आयनित हो जाती है और गैप से विद्युत् विसर्जन होने लगता है तथा उच्च आवृत्ति की विद्युत् चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं।
जब संसूचक D को इस प्रकार रखा जाता है कि उसका गैप Q, गैप P, के समान्तर हो, तो दोलायमान चुम्बकीय क्षेत्र संसूचक D के तल में लम्बवत् होता है जिससे संसूचक के गैप में दोलायमान विद्युत् क्षेत्र उत्पन्न होता है, अतः Q में चिंगारी निकलने लगती है।
अब यदि गैप Q, गैप P के लम्बवत् होता है तो कोई चिंगारी प्राप्त नहीं होती। इससे यह स्पष्ट होता है कि गैप P में उत्पन्न विद्युत् चुम्बकीय तरंगें ध्रुवित होती हैं। हर्ट्ज के प्रयोग में उत्पन्न विद्युत् चुम्बकीय तरंग का तरंगदैर्घ्य 6 मीटर प्राप्त होता है।