बोर प्रतिरूप की कमियाँ-
(i) बोर का सिद्धांत एक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणु जैसे हाइड्रोजन या आयनित हीलियम के लिये ही उपयुक्त है। इसके द्वारा अन्य परमाणुओं के स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं की जा सकी।
(ii) इस सिद्धांत में नाभिक को स्थिर माना गया है, परन्तु यह तभी सम्भव है जब नाभिक का द्रव्यमान अन्नत हो।
(iii) इसमें इलेक्ट्रॉन की कक्षाये वृत्ताकर मानी गयी है, जबकि यह अधिकतर दीर्घवृत्ताकार होती है।
(iv) इसके आधार पर स्पेक्ट्रमी रेखाओं की तीव्रता की व्याख्या नहीं की जा सकती है।
(v) कोणीय संवेग के क्वांटिकरण का कोई तर्क संगत आधार नहीं दिया गया है।
(vi) इसके आधार पर स्पेक्ट्रमी रेखाओं की सूक्ष्म संरचना की व्याख्या नहीं की जा सकती।
(vii) चुम्बकीय क्षेत्र प्रयुक्त करने पर स्पेक्ट्रमी रेखाओं में विपाटन होता है, यह प्रभाव जीमन प्रभाव कहलाता है जिसकी व्याख्या बोर सिद्धान्त से नहीं हो सकी। इस तरह विद्युत क्षेत्र में स्पेक्ट्रमी रेखाओं का विपाटन प्रेक्षित होता है जिसे स्टार्क प्रभाव कहते है।