Correct Answer - Option 4 : छन्द
स्पष्टीकरण-
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वेद इस सृष्टि के सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। वेदों के गूढ़ अर्थ को समझना सरल कार्य नहीं है।
- वेदों की भाषा, पाठ, भाव, अर्थ और यज्ञों की मीमांसा को समझने के लिए कुछ अंगों की आवश्यकता होती है,जिन्हें वेदांग कहते हैं।
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वेदांग शब्द का सामान्य अर्थ है वेदों के अंग। वेदांग शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है वेद + अंग = वेदांग। जिनसे किसी वस्तु के स्वरुप को जानने में सहायता मिलती है, उनको अंग कहते हैं।
- इस प्रकार वेदों को समझने के लिए जिन शास्त्रों की आवश्यकता होती है, उन्हें वेदांग कहते हैं।
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शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छंद और निरुक्त- ये छ: वेदांग है।
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छंद को वेदों का पाद, कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख कहा गया है। इसलिए कहा भी गया है -
छंदः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोsथ पठ्यते
ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोतमुच्यते ।
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरण स्मृतम्
तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ।।
- वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छंदों की रचना का ज्ञान छंदशास्त्र से होता है।
- इसे वेद पुरुष का पैर कहा गया है। ये छंद वेदों के आवरण है। छंद नियताक्षर वाले होते हैं।
- इसका उद्देश्य वैदिक मन्त्रों के समुचित पाठ की सुरक्षा भी है।
अत: स्पष्ट है कि छंद का परिगणन वेदांग में होता है।