प्रयोग के आधार पर शब्दों के दो भेद किए गए हैं -
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विकारी शब्द
जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं।जैसे :- कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे,हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं।
इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।
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अविकारी शब्द (अव्यय)
जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं।जैसे :- यहाँ, किन्तु, नित्य, और, हे अरे आदि।
इनमें क्रिया – विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं।
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संज्ञा - जिस संज्ञा शब्द से पदार्थों की अवस्था, गुण-दोष, भाव या दशा,धर्म आदि का बोध हो उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। यथा- बुढ़ापा, मिठास, बचपन, मोटापा, चढ़ाई, थकावट आदि।
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क्रिया विशेषण - वे शब्द जो क्रिया की विशेषता प्रकट करें, उन्हें क्रिया-विशेषण कहते हैं| जैसे – बाहर, भीतर, अन्दर, रात को आदि।
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सर्वनाम - सर्वनाम शब्द का प्रयोग संज्ञा के बदले में होता है, उसे सर्वनाम कहते हैं। सर्वनाम शब्द का अर्थ है- सब का नाम। यथा – वह, यह, तुम , मैं आदि ।
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संबंधबोधक - जिस अव्यय शब्द से संज्ञा अथवा सर्वनाम का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ प्रकट होता है, उसे सम्बन्ध बोधक अव्यय कहते है। जैसे – से पहले, के भीतर, की ओर, की तरफ, के बिना, के अलावा, के बगैर, के बदले, की जगह, के साथ, के संग, के विपरीत आदि।
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विशेषण - संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्द को विशेषण कहते हैं। यथा----. अच्छा लड़का, तीन पुस्तकें, नई कलम इत्यादि।
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विस्मयादिबोधक - जिन अविकारी शब्दों से हर्ष, शोक, आश्चर्य घृणा, दुख, पीड़ा आदि का भाव प्रकट हो उन्हे विस्मयादि बोधक अव्यय कहते हैं |
जैसे – ओह!, हे!, वाह!, अरे!, अति सुंदर!, उफ!, हाय!, धिक्कार!, सावधान!, बहत अच्छा!, तौबा-तौबा!, अति सुन्दर आदि ।
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क्रिया – जिन शब्दों से किसी कार्य का करना या होना व्यक्त हो उन्हें क्रिया कहते हैं। जैसे- रोया, खा रहा, जायेगा आदि।
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समुच्च्बोधक - जो अव्यय दो शब्दों अथवा दो वाक्यों को जोड़ने का कार्य करते हैं उन्हें समुच्चय बोधक अव्यय कहते है।
जैसे– और, तथा, एवं, मगर, लेकिन, किन्तु, परन्तु, इसलिए, इस कारण, अतः, क्योंकि, ताकि, या, अथवा, चाहे आदि।
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