चेचक कारक एवं प्रसार वेरियोला वाइरस नामक विषाणु इस रोग का कारक है। ये विषाणु वायु के माध्यम से व्यक्ति के श्वसन-तन्त्र में प्रवेश करते हैं। परम्परानुसार इसे ‘शीतला रोग’ की संज्ञा भी दी जाती है।
उद्भवन काल सामान्यत: इस रोग के लक्षण संक्रमण से 10 से 12 दिन की अवधि के अन्तराल पर प्रकट होते हैं। लक्षण रोग के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं।
⦁ तीव्र ज्वर के साथ, सिर व कमर में दर्द होता है।
⦁ जी मिचलाना एवं वमन की शिकायत हो सकती है।
⦁ लक्षण स्पष्ट होने पर आँखें लाल हो जाती हैं तथा मुँह आदि पर लाल दाने निकल आते हैं। चेचक के दाने लाल रंग के होते हैं, बाद में इनमें तरल द्रव भर जाता है।
⦁ रोग के ठीक होने की प्रक्रिया में 9-10 दिन बाद दाने मुरझाने लगते हैं एवं उनके स्थान पर पपड़ी-सी जम जाती है।
बचाव के उपाय इस रोग से बचाव हेतु निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
⦁ प्रत्येक व्यक्ति को समयानुसार चेचक का टीका अवश्य लगवा लेना चाहिए।
⦁ रोगी की अलग व्यवस्था करनी चाहिए एवं स्वस्थ व्यक्तियों को उसके सम्पर्क में नहीं आने देना चाहिए।
⦁ रोगी के बर्तन, बिस्तर तथा कपड़ों आदि को अलग ही रखना चाहिए तथा रोगी के ठीक होने पर उन्हें भली-भाँति नि:संक्रमित किया जाना चाहिए।
⦁ रोगी के मल-मूत्र, थूक तथा उल्टी आदि को खुले में नहीं छोड़ना चाहिए तथा उनके विसर्जन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।