खसरा
कारण एवं प्रसार यह एक विषाणु जनित रोग है। बच्चे इससे अधिक प्रभावित होते हैं। इसके विषाणु रोगी के गले के श्लेष्म तथा नाक के स्राव में विद्यमान रहते हैं तथा हवा में मिलकर संक्रमण का कारण बन जाते हैं।
उद्भवन काल विषाणु के शरीर में प्रवेश करने से रोग के लक्षण उत्पन्न होने में सामान्यतः 10-15 दिन लगते हैं। कभी-कभी यह अवधि 20 दिन की भी हो सकती है
लक्षण इस रोग के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं।
⦁ व्यक्ति को ठण्ड के साथ बुखार आता है तथा बेचैनी महसूस होती है।
⦁ आँखें लाल हो जाती हैं तथा खाँसी, छींक आदि की तीक्ष्णता बढ़ जाती है।
⦁ धीरे-धीरे पूरे शरीर पर दाने निकल आते हैं तथा बुखार तीव्र हो जाता है।
बचाव के उपाय इस रोग से बचने के उपाय निम्नलिखित हैं।
⦁ खसरे से पीड़ित बच्चे को एक अलग हवादार कमरे में रखना चाहिए।
⦁ रोगी की नाक व मुँह से निकले स्राव को पुराने व स्वच्छ कपड़े से पोंछकर उसे जला देना चाहिए
⦁ इधर-उधर थूकने की जगह केवल थूकदान का प्रयोग करना चाहिए। थूकने | वाले बर्तन में नि:संक्रामक पदार्थ डालना भी ठीक रहता है।
⦁ रोगी शिशु के वस्त्रों एवं खिलौनों को भी नि:संक्रामक पदार्थ से साफ करना आवश्यक है।
⦁ इस रोग से बचाव हेतु व्यक्तिगत स्वच्छता विशेषत: नाक व गले की सफाई विशेष महत्त्व रखती है।
उपचार इस रोग के विरुद्ध स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता बहुत ही कम शिशुओं में होती है यद्यपि एक बार खसरा होने पर प्रतिरक्षक क्षमता उत्पन्न हो जाती है। तथापि भविष्य में इसके होने की सम्भावना को कम करने के लिए बच्चों को खसरे का टीका लगवाना अनिवार्य होता है। देखभाल में रोगी को अधिक गर्मी तथा अधिक ठण्ड से बचाना आवश्यक होता है, क्योंकि इस रोग के साथ निमोनिया होने का भी भय रहता है।