प्लेग
कारण एवं प्रसार यह रोग पाश्च्यूरेला पेस्टिस नामक जीवाणु से होता है। इसका संक्रमण चूहों पर पाए जाने वाले पिस्सुओं से होता है। प्लेग के जीवाणु पिस्सुओं के माध्यम से चूहों को संक्रमित करते हैं, जिससे चूहे मरने लगते हैं। तत्पश्चात् पिस्सुओं द्वारा मनुष्यों को काटने पर, ये जीवाणु व्यक्ति के रक्त परिसंचरण में शामिल हो जाते हैं एवं व्यक्ति को रोगग्रस्त कर देते हैं। इसके बाद व्यक्ति से व्यक्ति में संक्रमित होने वाला यह रोग महामारी का रूप धारण कर लेता है।
लक्षण इस रोग के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं।
⦁ प्लेग के विषाणु के आक्रमण के प्रारम्भ में ही व्यक्ति अति तीव्र ज्वर (107°F | तक) से ग्रस्त हो जाता है।
⦁ व्यक्ति की आँखें लाल हो जाती हैं एवं अन्दर फँसती हुई प्रतीत होती हैं।
⦁ कभी-कभी रोगी को दस्त तथा कमजोरी भी होने लगती है।.
⦁ रोगी की दशा गम्भीर होने पर उसकी बगल तथा जाँघों में कुछ गिल्टियाँ निकल आती हैं। इस दशा में उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
बचाव के उपाय इस रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।
⦁ इस रोग से बचाव के लिए घर तथा सार्वजनिक स्थलों को स्वच्छ रखना अत्यन्त आवश्यक है।
⦁ विषाणु से संक्रमित क्षेत्र में चूहों को समाप्त करके भी महामारी के प्रकोप | को नियन्त्रित किया जा सकता है।
⦁ प्लेग के प्रकोप के दिनों में नंगे पैर नहीं रहना चाहिए इससे रोगवाहक कीटों के काटने की सम्भावना बढ़ जाती है।
⦁ प्लेग का टीका लगवाना भी अनिवार्य है।
उपचार प्लेग के लक्षण प्रकट होते ही रोगी को तुरन्त अस्पताल में भर्ती कर लेना चाहिए। इस रोग में अच्छी चिकित्सकीय सलाह एवं उपचार का विशेष महत्त्व होता है, अन्यथा रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।