रासायनिक निःसंक्रमण
जब नि:संक्रमण की प्रक्रिया रासायनिक पदार्थों के माध्यम से सम्पन्न होती है, तो इसे रासायनिक नि:संक्रमण की संज्ञा दी जाती है। रासायनिक नि:संक्रामकों को अवस्था के आधार पर तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-तरल, गैसीय एवं ठोस नि:संक्रामक। इन तीनों प्रकार के नि:संक्रामकों के उदाहरण निम्नवत् हैं।
रासायनिक नि:संक्रमण
⦁ तरल रासायनिक नि:संक्राम
⦁ गैसीय रासायनिक नि:संक्रामक
⦁ ठोस रासायनिक निःसंक्रामक
1. तरल रासायनिक निःसंक्रामक तरल रासायनिक नि:संक्रामकों का प्रयोग सामान्यत: पानी में घोल बनाकर किया जाता है। इस वर्ग के मुख्य नि:संक्रामक निम्न हैं।
⦁ फिनॉयल यह कार्बोलिक अम्ल से बनाया जाता है यद्यपि . उससे अधिक प्रभावी होता है। फिनॉयल मिश्रित जल के दूधिया घोल का प्रयोग, घर को कीटाणुमुक्त करने में किया जाता है। स्नानघर व शौचालय की सफाई में भी उपयोगी है।
⦁ कार्बोलिक एसिड यह कोलतार से निकलता है। सान्द्र कार्बोलिक एसिड त्वचा को जलाने वाला होता है। इसके घोल का प्रयोग वस्त्र आदि को नि:संक्रमित करने में किया जाता है।
⦁ फार्मेलिन यह एक तीव्र गन्ध वाला नि:संक्रामक है। यह आँखों में लगता है। इसका घोल शौचालय के कीटाणुओं को मारने में सहायक होता है। उपरोक्त के अतिरिक्त लाइजॉल एवं आइजॉल अन्य तरल नि:संक्रामक पदार्थ हैं। इनका इस्तेमाल कपड़ों आदि को रोगाणुमुक्त करने में किया जाता है।
2. गैसीय रासायनिक निःसंक्रामक सल्फर डाइऑक्साइड एवं क्लोरीन गैस प्रमुख रासायनिक नि:संक्रामक है। गन्धक को जलाने से बनने वाली सल्फर डाई-ऑक्साइड गैस से, कमरे की वायु को रोगाणुमुक्त किया जा सकता है। इसी प्रकार क्लोरीन जल तथा वायु को नि:संक्रमित करने में सक्षम है। नगरों में जल आपूर्ति विभाग द्वारा जल शुद्धि में इसका प्रयोग सामान्य है।
3. ठोस रासायनिक निःसंक्रामक ठोस रासायनिक नि:संक्रमिकों में प्रमुख है।
⦁ चूना यह जीवाणुओं को नष्ट करने वाला एक सस्ता रसायन है। दीवारों पर चूने की सफेदी का प्रयोग कीटाणुओं को नष्ट करने में सहायक है। फर्श, नाली तथा शौच आदि के स्थान पर चूने का छिड़काव उपयोगी होता है। घर के दरवाजे के सामने थोड़ी दूरी तक चूना बिछा देने से प्लेग के वाहक पिस्सू मकान में प्रवेश नहीं कर पाते।
⦁ ब्लीचिंग पाउडर यह पाउडरे, जल को रोगाणुमुक्त करने में सहायक होता है। इस पाउडर से क्लोरीन गैस निकलती है।
⦁ पोटैशियम परमैंगनेट यह नि:संक्रामक लाल दवा के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुओं एवं तालाबों के जल को कीटाणुरहित करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। फलों, सब्जियों एवं बर्तनों आदि को रोगाणुमुक्त करने में इसका घोल सहायक है।
⦁ कॉपर सल्फेट यह एक तीव्र कीटाणुनाशक पदार्थ है। इसे तूतिया या नीला थोथा भी कहा जाता है।