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जनसंख्या विस्फोट एक राष्ट्रीय समस्या है, इसके क्या परिणाम हैं?

अथवा

जनसंख्या वृद्धि की हानियाँ लिखिए।

अथवा

जनसंख्या विस्फोट के परिणाम लिखिए।

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जनसंख्या विस्फोट-एक राष्ट्रीय समस्या

जनसंख्या विस्फोट से अभिप्राय है-जनसंख्या वृद्धि की दर का अत्यधिक होना। हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि दर निरन्तर कम होने के बावजूद (1991 के पश्चात् से) अभी भी जनसंख्या विस्फोट की श्रेणी में है तथा यह एक गम्भीर राष्ट्रीय समस्या है। जनसंख्या वृद्धि की इस उच्च दर ने देश के पूर्ण सम्भावित विकास के प्रयासों को प्रायः विफल कर दिया है।
जनसंख्या समस्या के कारण सीमित संसाधनों में आवास, पोषण, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा तथा रोजगार के क्षेत्र में बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाना असम्भव हो रहा है। अतः जनसंख्या विस्फोट को राष्ट्रीय समस्या स्वीकार करते हुए, इसके समाधान के ठोस उपाय किए जाना अपरिहार्य हो गया है।

जनसंख्या विस्फोट के परिणाम

जनसंख्या वृद्धि के परिणामों अथवा हानियों का विवरण निम्नलिखित है।

⦁    निर्धनता में वृद्धि
⦁    भुखमरी
⦁    जीवन-स्तर को निम्न होना
⦁    स्वास्थ्य स्तर का निम्न होना
⦁    कृषि योग्य भूमि को बँट जाना
⦁    वैयक्तिक विघटन
⦁    पारिवारिक विघटन
⦁    सामाजिक विघटन

1. निर्धनता में वृद्धि निर्धनता व्यापक अर्थ में विकास के अवसरों का अभाव जनसंख्या विस्फोट है। उल्लेखनीय है कि भारत जैसे के परिणाम विकासशील देश में, जहाँ संसाधन सीमित होते हैं, जनसंख्या आधिक्य निर्धनता में वृद्धि का कारण बनता है।

2. भुखमरी- निर्धनता के साथ-साथ भुखमरी की समस्या भी उठ खड़ी होती है। खाद्यान्न उत्पादन के सीमित होने की स्थिति में यदि जनसंख्या तेजी से बढ़ती है, तो निश्चित रूप से लोगों को आवश्यकता से कम मात्रा में खाद्य-सामग्री उपलब्ध होती है। यह दशा प्राय: भुखमरी एवं अभाव की समस्या का रूप ले सकती है।

3. जीवन-स्तर का निम्न होना- तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण सम्बन्धित समाज के लोगों का जीवन-स्तर सामान्यत: निम्न होता जाता है। जन-सामान्य को आवास, पोषण, शिक्षा, चिकित्सा एवं परिवहन सम्बन्धी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है।

4. स्वास्थ्य स्तर का निम्न होना- जनसंख्या वृद्धि की स्थिति में, रहन-सहन के निम्न स्तर का प्रभाव जन-सामान्य के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार की अनुपलब्धता एवं स्वास्थ्यवर्द्धक आवास सुविधाओं का अभाव स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न करता है। स्वास्थ्य स्तर निम्न होने पर विभिन्न संक्रामक एवं अभावजनित रोग विकराल रूप धारण कर लेते हैं।

5. कृषि योग्य भूमि का बँट जाना- कृषि योग्य भूमि एक सीमित संसाधन है। जनसंख्या में वृद्धि होने पर, इस भूमि का बँटवारा होता जाता है तथा भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटकर अनार्थिक जोतों का रूप ले लेती है और भारत | जैसे कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाले देश को अनाज की कमी की गम्भीर
समस्या का सामना करना पड़ता है।

6. वैयक्तिक विघटन- जनसंख्या विस्फोट की स्थिति समाज में अनेक अभावों को जन्म देती है। निर्धनता तथा बेरोजगारी की परिस्थितियों में वैयक्तिक विघटन की दर भी बढ़ने लगती है। अनेक व्यक्ति अपराधों, मद्यपान तथा | आत्महत्या जैसी प्रवृत्तियों के शिकार होने लगते हैं।

7. पारिवारिक विघटन- वैयक्तिक विघटन का प्रभाव, पारिवारिक संगठन पर पड़ना स्वाभाविक है। अभाव की परिस्थितियों में पारिवारिक कलह तथा
तनाव में भी वृद्धि होने लगती है।

8. सामाजिक विघटन- व्यक्ति समाज की मूल इकाई है। अत: वैयक्तिक एवं पारिवारिक विघटन की स्थिति में समाज को प्रभावित होना स्वाभाविक है। इस स्थिति में सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था विघटित होने लगती है तथा भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ सामाजिक संस्थाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

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