Use app×
QUIZARD
QUIZARD
JEE MAIN 2026 Crash Course
NEET 2026 Crash Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
1.9k views
in General by (46.0k points)
closed by

रवीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक प्रयोग का मूल्यांकन कीजिए।

1 Answer

+1 vote
by (42.8k points)
selected by
 
Best answer

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपना विद्यालय 1901 में स्थापित किया था। इसमें बालक थे। उस समय उन्होंने शिक्षण सम्बन्धी विचारधाराओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सुनील चन्द्र सरकार के अनुसार–“टैगोर रूसी तथा फ्रोबेल के विचारों से अवश्य प्रभावित थे, यह प्रभाव उन पर अपना विद्यालय चलाने से पूर्व था और उस समय तक जब तक कि उन्होंने अपने प्रयोग किये, वे डीवी के शिक्षाशास्त्र के प्रभाव क्षेत्र में आ चुके थे।” शिक्षा के बारे में टैगोर की धारणा इस प्रकार है-“शिक्षा जीवन का स्थायी साहस है। यह अस्पताल की पीड़ायुक्त चिकित्सा की नीति नहीं है, जिससे उनका (छात्रों का) इलाज हो सके, उनकी अज्ञानता का निरोध हो सके, अपितु यह तो स्वास्थ्य की एक क्रिया है जो स्वाभाविक रूप, में मस्तिष्क को उपयोगी बनाती है।”

टैगोर के शिक्षा-दर्शन में-

⦁    स्वतन्त्रता
⦁    रचनात्मक आत्माभिव्यक्ति
⦁    प्रकृति तथा मनुष्य के रचनात्मक सम्बन्ध पाये जाते हैं।

स्वतन्त्रता के विषय में टैगोर ने कहा है-“शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्य स्वतन्त्रता में है। यह स्वतन्त्रता विश्व के नियमों की अज्ञानता के प्रति होनी चाहिए, यह स्वतन्त्रता पूर्वाग्रहों एवं हठधर्मी के प्रति हो जो कि हमारे मानव समाज में हैं।’ मनुष्य आमने-सामने अपनी एकान्त प्रकृति के कारण प्रकृति के साथ सहयोग करता है। प्रकृति के रहस्यों का शोषण करता है और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए सभी सुविधाओं का उपयोग करता है।
उन्होंने कहा भी है कि प्रकृति को जानना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उसमें रहना भी आवश्यक है। उनके शिक्षा-दर्शन में मानवता यथा अन्तर्राष्ट्रीयता दोनों ही पाये जाते हैं। उनका विचार है कि विश्व में मानव ही ईश्वर की श्रेष्ठ कृति है। हर व्यक्ति रचनात्मक एवं विद्वान् होना चाहिये। टैगोर मानव मात्र की एकता में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा भी है, “मानव मात्र के उदाहरण में एकता अनुभव करनी चाहिए। जो संवेदनाओं में गहन हो, सत्ता में पहले की अपेक्षा शक्तिशाली हो।”

शिक्षा के उद्देश्य

पाठ्यक्रम
रवीन्द्र ने अपने शिक्षा-दर्शन में ऐसा पाठ्यक्रम लिया है जो जीवन के सभी पक्षों का विकास करे। उन्होंने इतिहास, विज्ञान, प्रकृति अध्ययन, भूगोल, साहित्य आदि को पाठ्य विषय बनाया और नाटक, भ्रमण, बागवानी, क्षेत्रीय अध्ययन, प्रयोगशाला कार्य, ड्राइंग, मौलिक रचनाएँ, संग्रहालय आदि क्रियाओं के साथ लिया। खेलकूद, समाज सेवा आदि पर पर्याप्त बल दिया है।

शिक्षण विधि
टैगोर ने शिक्षण विधि में दण्ड व्यवस्था समाप्त की और पठन विधि के दबा देने वाली प्रथा को अन्त करके सहज स्वाभाविक रूप से क्रिया द्वारा सीखना, भ्रमण द्वारा, वाद-विवाद, प्रयोग विधि आदि को शिक्षण का माध्यम बनाया। रवीन्द्र शिक्षा-दर्शन का मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है

⦁    रवीन्द्र शिक्षा-दर्शन का आधार प्रकृतिवादी है और उद्देश्य आदर्शवादी।
⦁    मानव एकता में विश्वास करता है।
⦁    जीवन के लिए शिक्षा की व्यवस्था है और शिक्षा का उद्देश्य है जीवन को पूर्णता प्रदान करना।
⦁    सभी पूर्वाग्रहों से विमुक्ति।
⦁    सांस्कृतिक विकास पर बल।
⦁    पूर्व तथा पश्चिम का समन्वय।
⦁    आदर्श पाठ्यक्रम का निर्माण एवं संचालन।
⦁    जीवन पद्धति से मिलती-जुलती शिक्षण विधि।

आज रवीन्द्रनाथ टैगोर की संस्थाएँ विश्व शिक्षण पद्धति में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। उनका शिक्षा के क्षेत्र में यह योगदान उनके काव्य की भाँति ही अपूर्व है। उनकी मृत्यु के समय कलकत्ता विश्वविद्यालय की सीनेट ने कहा था-“उनके द्वारा भारत ने मानव मात्र को, उनके साहित्य दर्शन, शिक्षा तथा कला के अध्ययन से संदेश दिया है। उनके द्वारा अमर कीर्ति प्राप्त की है और भारत के स्तर को। विश्व में ऊँचा उठाया है।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...