हम जानते हैं कि कण्ठस्थीकरण अथवा याद करने की विभिन्न विधियाँ हैं। विभिन्न विधियों को ध्यान में रखते हुए स्मरण की क्रिया के सम्बन्ध में निष्कर्षतः हम कह सकते हैं-एक, स्मरण एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है तथा दो, स्मरण पर विषय की प्रकृति का प्रभाव पड़ता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से
व्यक्तिगत भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की रुचि, अभिरुचि, बुद्धि, मनोवृत्ति, योग्यता एवं क्षमता अलग होती है। इसी प्रकार कुछ विषय सरल तो कुछ कठिन, ‘कुछ छोटे तो कुछ लम्बे, कुछ रुचिकर तो कुछ अरुचिकर हो सकते हैं। किस व्यक्ति के लिए स्मरण की कौन-सी विधि सर्वोत्तम होगी, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। वस्तुतः स्मरण की सभी विधियों का सापेक्षिक (ग्नि) महत्त्व दृष्टिगोचर होता है। याद करने वाला व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं तथा विषय की प्रकृति के अनुसार किसी भी एक उपयुक्त विधि या दो को मिलाकर मिश्रित विधि का उपयोग कर सकता है।
एक लम्बी कविता को कण्ठस्थ करने के लिए सबसे पहले समूची कविता को एक साथ याद किया जाना चाहिए। कुछ अन्तर से थोड़े समय बाद, कविता को इसके पदों में खण्डित करके अलग-अलग कण्ठस्थ किया जाएगा, किन्तु विभिन्न खण्डों या अंशों को परस्पर एक-दूसरे से अवश्य जोड़ते जाना चाहिए। इसकी स्मृति सर्वोत्तम समझी जाती है। स्पष्टत: इसके लिए पूर्ण एवं आंशिक खण्ड विधि को मिलाकर मिश्रित विधि का उपयोग किया जाएगा।