सामाजिक नियन्त्रण में ‘नैतिकता’ एवं ‘प्रथाओं की भूमिका
नैतिकता-सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक अभिकरण के रूप में नैतिकता का स्थान भी बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उचित-अनुचित का विचार ही नैतिकता है। नैतिकता व्यक्ति को सदाचार का मार्ग दिखाती है। नैतिकता की भावना सामाजिक नियन्त्रण को एक सुदृढ़ आधार प्रदान करती है। नैतिकता के द्वारा व्यक्ति बुद्धि और तर्क की कसौटी पर उचित-अनुचित का निर्णय करना सीख जाता है। सत्य का अनुपालन, हिंसा से बचाव, न्याय, दया, त्याग, सहानुभूति और सम्मान नैतिक आदर्श हैं। इनका अनुपालन करके व्यक्ति सामाजिक नियन्त्रण में स्वत: सहायक बन जाता है।
प्रथाएँ-धर्म की तरह प्रथाएँ भी सामाजिक नियन्त्रण का एक महत्त्वपूर्ण अनौपचारिक अभिकरण हैं। जनरीतियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती हुई जब समूह के व्यवहार का अंग बन जाती हैं, तब उन्हें प्रथाएँ कहा जाता है। मनुष्य जन्म से ही अनेक प्रथाओं से घिरा रहता है; अत: उनकी अवहेलना करना उसकी शक्ति से बाहर है। प्रथाएँ मानव संस्कृति का अभिन्न अंग होती हैं; अतः मानवव्यवहार उन्हीं के द्वारा निर्धारित होता है। प्रथाओं को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है। जाति में विवाह करना, जाति निषेधों का पालन करना, मृत्यु पर सम्बन्धी के यहाँ शोक प्रकट करना तथा मृत्युभोज देना आदि प्रथाएँ हैं। व्यक्ति बिना तर्क आँख मूंदकर प्रथा का अनुपालन कर सामाजिक नियन्त्रण में सहायक बने रहते हैं।