नगरीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
‘नगरीकरण’ शब्द नगर से ही बना है। सामान्यत: नगरीकरण का अर्थ नगरों के उद्भव, विकास, प्रसार एवं पुनर्गठन से लिया जाता है। वर्तमान औद्योगिक नगर औद्योगीकरण की ही देन हैं। जब एक स्थान पर एक विशाल उद्योग स्थापित हो जाता है तो उस स्थान पर कार्य करने के लिए लोग उमड़ पड़ते हैं और धीरे-धीरे वह स्थान नगर के रूप में विकसित हो जाता है। नगरीकरण को परिभाषित करते हुए ब्रीज लिखते हैं, “नगरीकरण एक प्रक्रिया है जिसके कारण लोग नगरीय कहलाने लगते हैं, शहरों में रहने लगते हैं, कृषि के स्थान पर अन्य व्यवसायों को अपनाते हैं जो नगर में उपलब्ध हैं और अपने व्यवहार-प्रतिमान में अपेक्षाकृत परिवर्तन का समावेश करते हैं।’
डेविस के अनुसार, “नगरीकरण एक निश्चित प्रक्रिया है, परिवर्तन का वह चक्र है जिससे कोई समाज कृषक से औद्योगिक समाज में परिवर्तित होता है।” बर्गेल के अनुसार, “ग्रामीण क्षेत्रों को नगरीय क्षेत्र में बदलने की प्रक्रिया को ही हम नगरीकरण कहते हैं।”
नगरीकरण की विशेषताएँ
⦁ नगरीकरण ग्रामों के नगरों में बदलने की प्रक्रिया का नाम है।
⦁ नगरीकरण में लोग कृषि व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसाय करने लगते हैं।
⦁ नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें लोग गाँव छोड़कर शहरों में निवास करने लगते हैं जिससे शहरों का विकास, प्रसार एवं वृद्धि होती है।
⦁ नगरीकरण जीवन जीने की एक विधि है, जिसका प्रसार शहरों से गाँवों की ओर होता है। नगरीय जीवन जीने की विधि को नगरीयता या नगरवाद कहते हैं। नगरवाद केवल नगरों तक ही सीमित नहीं होता वरन् गाँव में रहकर भी लोग नगरीय जीवन विधि को अपना सकते हैं।
उद्योगों की स्थापना के साथ-साथ ही भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया भी तीव्र हुई है। ग्रामीण लोग देश के विभिन्न भागों में स्थित कारखानों में काम करने के लिए गमन करने लगे हैं, फलस्वरूप महानगरीय एवं नगरीय जनसंख्या में वृद्धि हुई है। | भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया ने यहाँ के समाज और जनजीवन को बहुत कुछ प्रभावित किया है। इसके परिणामस्वरूप एक तरफ अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं तो दूसरी ओर कई सामाजिकआर्थिक परिवर्तनों एवं समस्याओं को भी पनपने का मौका मिला है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि नगरीकरण का अर्थ केवल ग्रामीण जनसंख्या का शहर में आकर बसना या भूमि से सम्बन्धित कार्यों के स्थान पर अन्य कार्यों में अपने को लगाना ही नहीं है। लोगों के नगर में आकर बस जाने मात्र से ही उनका नगरीकरण नहीं हो जाता। ग्रामीण व्यक्ति भी जो कि ग्रामीण व्यवसाय और आदतों को त्यागते नहीं हैं, नगरीय हो सकते हैं, यदि वे नगरीय जीवन-शैली, मनोवृत्ति, मूल्य, व्यवहार एवं दृष्टिकोण को अपना लेते हैं।
नगरीकरण का भारतीय समाज पर प्रभाव
नगरीकरण की प्रक्रिया ने, जो भारतवर्ष में पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध से चल रही है, देश में अनेकानेक परिवर्तन उत्पन्न कर दिये हैं और जनजीवन को गहराई से प्रभावित किया है, जिस पर अग्रलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत विचार करेंगे
(क) नगरीकरण का पारिवारिक जीवन पर प्रभाव
नगरीकरण की भारत के पारिवारिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है
1. संयुक्त परिवार का विघटन – गाँवों में संयुक्त परिवार पाये जाते हैं। शहरों में स्थानाभाव के कारण तथा गाँवों से एकाकी रूप से स्थानान्तरित होने के कारण संयुक्त परिवार का स्थान एकाकी छोटे परिवारों ने ले लिया है।
2. पारिवारिक नियन्त्रण का अभाव – गाँवों में संयुक्त परिवार के मुखिया का परिवार पर काफी नियन्त्रण रहता है। नगरों में छोटे परिवार तथा उन्मुक्तता के कारण पारिवारिक नियन्त्रण इतना कठोर नहीं होता।
3. नयी प्रथाएँ एवं परम्पराएँ – नगरीकरण के प्रभाव से भारत के गाँवों के परिवार की प्रथाएँ एवं परम्पराएँ भी बदलती जा रही हैं; जैसे – माँ-बाप को माता-पिता कहने के स्थान पर मम्मी-डैडी कहना, रसोई में पीढ़े पर खाने के बजाय मेज-कुर्सी पर खाना, भाषा में अंग्रेजी का अधिक प्रयोग करना आदि।
4. पारिवारिक जीवन में अस्थिरता – गाँवों में पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक स्थिर एवं स्थायी होते हैं। शहरों में स्त्रियों को पर-पुरुषों से मिलने-जुलने का काफी अवसर मिलता रहता है। और अधिक स्वतन्त्रता रहती है; इसलिए पति-पत्नी के सम्बन्धों में कुछ कम स्थिरता होती है। नगरों में तलाक की घटनाएँ अधिक होती हैं।
5. वैवाहिक आदशों में परिवर्तन – नगरों में युवक-युवतियाँ उच्च स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने में लगे रहते हैं। फिर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए नौकरी ढूंढ़ते हैं। स्वावलम्बन प्राप्त करने के इस प्रयास में विवाह की अवस्था बढ़ जाती है, जिससे विलम्ब विवाह नगरों में सामान्य हो गये हैं। कुछ लोग विवाह के चक्कर में नहीं फंसना चाहते, अत: वे अविवाहित रहते हैं। इनके अतिरिक्त नगरों में प्रेम-विवाहों की परम्परा भी प्रचलित है और विधवा-विवाह बुरे नहीं माने जाते।
6. स्त्रियों की स्थिति में सुधार – नगरीकरण के साथ-साथ भारत में स्त्रियों में स्वावलम्बन “और स्वतन्त्रता की तरंग अधिक व्याप्त होती जा रही है। वे पुरुषों के दबाव में और पर्दे में नहीं रहतीं। वे पुरुष के समकक्ष शिक्षा प्राप्त करती हैं और नौकरियाँ करती हैं। इस प्रकार उनकी दशा में काफी सुधार हुआ है और होता जा रहा है।
(ख) नगरीकरण का सामाजिक जीवन पर प्रभाव
नगरीकरण का भारतीय सामाजिक जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है
1. शिक्षा का प्रसार – भारत में शिक्षितों की संख्या बढ़ रही है, क्योंकि स्थान-स्थान पर विद्यालय खुलते जा रहे हैं। शिक्षा के इस व्यापक प्रसार से अन्धविश्वास में कमी, सामाजिक जीवन की अधिक गहरी समझ, विचारों का आदान-प्रदान, उद्योगों का विकास, कृषि की उन्नति, व्यापार में विकास आदि सभी कुछ हो रहा है।
2. सभ्यताओं का संगम – नगरों में विभिन्न जातियों, प्रदेशों, सम्प्रदायों आदि के लोग रहते हैं। विदेशों से भी लोगों का आवागमन होता रहता है। इस प्रकार रहन-सहन के तरीकों, भाषाओं और विचारों के मिश्रण से रहन-सहन में परिवर्तन होता रहता है। भारत के अनेक भागों में यह लक्षण परिलक्षित हो रहा है। फलस्वरूप स्थाने-विशेष की मूल संस्कृति में भी परिवर्तन हो जाती है।
3. संचार के साधनों का प्रसार – नगरीकरण के साथ संचार के साधनों में भी परिवर्तन होता
है। भारत के अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में रेलों, बसों, तार, टेलीफोन आदि की सुविधाओं का व्यापक प्रसार हुआ। इससे नये विचारों का प्रसार एवं विभिन्न विचारधाराओं का तीव्र मिश्रण सम्भव हो सका है।
4. अपराध-प्रवृत्ति का प्रसार – शहर में आवास की सुविधाओं का अभाव रहता है, जनसंख्या अधिक रहती है, धनलोलुपता अधिक पायी जाती है, इसलिए लोगों में नैतिकता का अभाव होता है। झूठ, घूस, चोरी, छल-कपट, मिलावट, शराबखोरी, जुआ, डकैती, हत्या आदि भाँतिभाँति के अपराध सामाजिक जीवन पर हावी होते जा रहे हैं और उसे नारकीय बना रहे हैं। नगरीकरण के साथ-साथ मानव को मूल्य कम और धन का महत्त्व अधिक बढ़ता जा रहा है।
5. बीमारियों का प्रसार – स्वास्थ्य-विभाग की व्यवस्थाओं के बावजूद भी घनी जनसंख्या, तंग, अँधेरी, बदबू तथा सीलन से युक्त बस्तियों, खुली हवा का अभाव, खाद्य पदार्थों में तरह-तरह की मिलावट, अवैध एवं मुक्त यौनसम्बन्ध तथा अनियमित रहन-सहन से नगरीकरण के साथ रोगों का भी काफी प्रसार होता है।
6. रहन-सहन में कृत्रिमता – नगरीकरण के प्रभाव से गाँवों का स्वाभाविक एवं प्राकृतिक जीवन कृत्रिम रूप ग्रहण करने लगता है। कोल्ड स्टोरेज की सब्जियाँ, दवाओं से युक्त गेहूँ, पॉलिश किया हुआ चावल, रँगी हुई दाल, कृत्रिम वनस्पति घी एवं मक्खन, सेन्ट डाला हुआ कडूवा तेल, टिन में बन्द अन्य खाद्य सामग्रियों का प्रयोग करते हैं। वस्त्रों में सूती, ऊनी व रेशमी वस्तुओं के स्थान पर बनावटी रेशों के वस्त्र; जैसे-टेरीलीन, नायलॉन आदि; का प्रयोग किया जाता है।
7. स्वास्थ्य में गिरावट, किन्तु जीवनावधि में वृद्धि-रहन – सहन की अनियमितता तथा अशुद्ध वस्तुओं के सेवन आदि के कारण नगरीकरण से लोगों के सामान्य स्वास्थ्य में गिरावट आती है। किन्तु चिकित्सा की उत्तम पद्धतियों में रोगों का निराकरण भी हो जाता है, और नगर में रहने वाला भारतीय कमजोर, किन्तु अधिक लम्बा जीवन जीता है।
8. नशीले द्रव्यों के सेवन में वृद्धि – नगरीकरण के प्रभाव से लोगों में शराब, अफीम, एल० एस० डी०, मारिजुआना, हीरोइन, भाँग आदि के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ती है, क्योकि नगरीय जीवन में तनाव से शान्ति प्राप्त करने हेतु नशीले द्रव्यों का सेवन आवश्यक बन जाता है। इनके साथ-साथ नींद प्राप्त करने के लिए सोने की गोलियों का प्रयोग भी बढ़ता है।
9. भौतिकवाद की प्रधानता – नागरिक प्रभाव के कारण भारतीय समाज के आदर्शवादी सिद्धान्त तिरोहित होने लगे हैं। लोगों का ध्यान आत्मिक विकास के स्थान पर भौतिक सुख सम्पन्नता प्राप्त करने पर अधिक रहने लगा है। इससे पारस्परिक संघर्ष, ईष्र्या-द्वेष, वैमनस्य, प्रतियोगिता को बढ़ावा मिला है और तनाव-चिन्ता में वृद्धि हुई है।
(ग) नगरीकरण का भारतीय आर्थिक जीवन पर प्रभाव
नगरीकरण के प्रभाव से भारतीय आर्थिक जीवन भी काफी प्रभावित है, जिसका विवरण निम्न प्रकार है
1. पूँजीवाद का विकास – उद्योगों और व्यापारिक कार्यों से थोड़े-से लोगों के हाथ में धन का केन्द्रीकरण होने लगा है और शेष जनता शोषण का शिकार हुई है। जिनके पास साधनसुविधाएँ हैं, वे अधिकाधिक धन कमा रहे हैं तथा जिनके पास इनका अभाव है, उनकी दशा गिरती जाती है।
2. महँगाई में वृद्धि – जनसंख्या में अधिक वृद्धि एवं उत्पादन में कमी की वृद्धि के कारण मूल्यों में वृद्धि होती है, वस्तुएँ महँगी हो जाती हैं जिससे मध्यम और निम्न वर्ग त्रस्त हो रहा है।
3. कुटीर उद्योगों का ह्रास – नगरीकरण के साथ बड़े उद्योग-धन्धों का प्रसार तेजी से हुआ है। और कुटीर उद्योगों का उसी अनुपात में ह्रास हुआ है। फलस्वरूप नगरीकरण के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था असन्तुलित होती जा रही है।
4. बेकारी में वृद्धि – नगरीकरण के साथ-साथ बेकारी में वृद्धि होती है, क्योंकि बड़े उद्योगों में मशीनें मानवीय श्रम का स्थान ले लेती हैं, जिससे बेकारी बढ़ जाती है। व्यवसाय के अभाव से निर्धनता बढ़ती है। नगरीकरण से ऐसे शिक्षित नवयुवकों की संख्या बढ़ती है, जो केवल पढ़ने-लिखने से सम्बन्धित काम करना चाहते हैं। इस तरह के नवयुवक गाँवों से भी नगर में नौकरी की तलाश में आकर इकट्ठे होने लगते हैं और बेकारी की संख्या में वृद्धि करते हैं।
5. वाणिज्य और व्यापार का विस्तार – नगरीकरण के साथ संचार के साधनों का विस्तार और प्रसार होता है। पक्के वातानुकूलित गोदामों का निर्माण होता है, जो वस्तुओं को संग्रहीत करने की सुविधा प्रदान करते हैं। दूर-दूर से व्यापारी आकर इकट्ठे होते हैं और इस प्रकार वाणिज्य और व्यापार का विस्तार होता है।