स्वामी विवेकानन्द ने आध्यात्मवाद को पुनर्जन्म देकर हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता को स्थापित करके उसे ईसाई तथा इस्लाम के आक्रमणों एवं प्रभाव से बचाया। स्वामी जी राष्ट्रीयता के पोषक थे। उन्होंने देश के नवयुवकों में सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास किया और उन्हें “उठो जागो और तब तक न रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो” का सन्देश दिया।
1893 ई० में, वे शिकागो में सर्व-धर्म विश्व सम्मेलन में भाग लेने गए। वहाँ उन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी में अपने विचारों और सिद्धान्तों को व्यक्त किया, जिसका वहाँ उपस्थित सभी धर्मों के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा हिन्दू धर्म अति महान् है, क्योंकि यह सभी धर्मों की अच्छाइयों को समान रूप से स्वीकार करता है।” उन्होंने अमेरिकी लोगों की नीति की आलोचना करते हुए लिखा है- “आप लोग अपने ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए तो भारत में असीम धन व्यय कर सकते हैं, लेकिन भारतवासियों की गरीबी और भुखमरी को दूर करने के लिए कुछ नहीं कर सकते। भारत में धर्म का अभाव नहीं, धन का अभाव है।” उन्होंने गर्वपूर्वक घोषणा की थी कि यदि विश्वमण्डल के किसी भू-क्षेत्र को पुण्यभूमि कहा जा सकता है, तो निश्चित रूप से वह भारतवर्ष ही है।
विदेशों से लौटने के बाद विवेकानन्द ने समाजसेवा को व्यवस्थित रूप देने के उद्देश्य से ‘रामकृष्ण मिशन’ नाम से एक नया संगठन 5 मई 1897 में स्थापित किया। इस संगठन की ओर से दुर्भिक्ष, महामारी, बाढ़ आदि आपदाओं के समय सहायता कार्य किये गये। विवेकानन्द ने बताया कि मोक्ष संन्यास से नहीं बल्कि मानव मात्र की सेवा से प्राप्त होता है। उनका तर्क था कि शिक्षा सामाजिक बुराईयों को दूर करने का सबसे सशक्त माध्यम है। सत्य के बारे में उनका मानना था कि किसी बात पर यह सोचकर विश्वास न करो कि तुमने उसको किसी पुस्तक में पढ़ा है अथवा किसी ने ऐसा कहा है, अपितु स्वयं सत्य की खोज करो।”
विवेकानन्द ने कभी भी सीधे तौर पर ब्रिटिश नीतियों के विरोध में अथवा राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में प्रचार नहीं किया लेकिन सुधार, एकता, जागरण और स्वतन्त्रता के प्रति उनके सभी प्रवचनों के परिणामस्वरूप ही राष्ट्रवाद की सशक्त भावना प्रवाहित हुई। उन्होंने शिक्षित भारतीयों को सम्बोधित करते हुए कहा, “जब तक भारत में करोड़ों लोग भूख और अज्ञान से ग्रसित होकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं, तब तक मैं प्रत्येक उस व्यक्ति को देशद्रोही समझेंगा, जो उनके खर्च से शिक्षित होने के बाद उनके प्रति तनिक भी ध्यान नहीं देता।” रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विवेकानन्द को ‘सृजन की प्रतिभा’ कहा है। वे अमेरिका में तूफानी हिन्दू’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। सुभाषचन्द्र बोस ने लिखा है कि “उनमें बुद्ध का हृदय और शंकराचार्य की बुद्धि थी तथा वह आधुनिक भारत के निर्माता थे।
इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म, संस्कृति, सभ्यता, गौरव, समाज और राष्ट्रीयता के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इस कारण रामकृष्णन मिशन, भारतीय पुनरुद्धार आन्दोलन का एक महत्त्वपूर्ण भाग बन गया और आधुनिक समय में वह विभिन्न क्षेत्रों में भारत की सेवा कर रहा है।