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“राजा राममोहन राय भारतीय पुनर्जागरण के जनक थे।”इस कथन की विवेचना कीजिए।

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राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1774 ई० को बंगाल के राधानगर गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्हें भारतीय राष्ट्रवाद का अग्रदूत और जनक कहा जा सकता है। वे एक ईश्वर की सत्ता में विश्वास करते थे। उन्होंने लोगों में अपने धर्म एवं राष्ट्र की स्वतन्त्रता के प्रति चेतना उत्पन्न की और अनेक सामाजिक एवं धार्मिक सुधार भी किए। धार्मिक सुधार- आधुनिक भारत के धार्मिक जागरण का प्रारम्भ राजा राममोहन राय से ही होता है। उन्होंने हिन्दू धर्म तथा संस्कृति को अन्धविश्वास तथा आडम्बरों के जाल से मुक्त किया।

उस समय रूढ़ियों, ढोंगों तथा आडम्बरों की भारी तह ने हिन्दुत्व के सच्चे स्वरूप को ढक लिया था। ईसाई पादरी, हिन्दू धर्म के आडम्बरों की तीव्र आलोचना कर रहे थे। अंग्रेजी पढ़ेलिखे भारतीय नवयुवक द्रुतगति से ईसाइयत की ओर दौड़ रहे थे। राजा राममोहन राय इस स्थिति को देखकर अत्यन्त दु:खी हुए। उन्होंने हिन्दू धर्म के यज्ञ-सम्बन्धी कर्मकाण्ड, मूर्तिपूजा तथा जातिवाद का खण्डन किया। उन्होंने फारसी में तुहफत-उलमुवाहिदीन नामक पुस्तक लिखी, जिसमें मूर्तिपूजा का खण्डन तथा एकेश्वरवाद की प्रशंसा की गई थी। उन्होंने संक्षिप्त वेदान्त नामक पुस्तक में वेदान्त का टीका सहित अनुवाद किया। वे वेदान्त को हिन्दुत्व का आधार बनाना चाहते थे।

हिन्दू समाज में नए धार्मिक विचारों का प्रचार करने के उद्देश्य से उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) में 1815 ई० में ‘आत्मीय सभा तथा 1816 ई० में वेदान्त कॉलेज की स्थापना की और अन्त में 20 अगस्त, 1828 को शुद्ध एकेश्वरवादियों की उपासना के लिए उन्होंने कलकत्ता में ब्रह्म समाज की स्थापना की। इस समाज की बैठकों में वेद तथा उपनिषदों का पाठ हुआ करता था। इसमें मूर्तिपूजा तथा अवतार के सिद्धान्तों को नहीं माना गया था। वस्तुतः राममोहन राय विश्व बन्धुत्व तथा मानस प्रेम के पुजारी थे। उनकी निष्ठा किसी सम्प्रदाय विशेष तक ही सीमित न थी। मूर्तिपूजा का विरोध, एकेश्वरवाद में अटल विश्वास, बुद्धिवादी दृष्टिकोण तथा मानव धर्म ये राममोहन राय के प्रमुख सिद्धान्त थे, जिनके आधार पर वे हिन्दुत्व का संशोधन करना चाहते थे।

उनकी इच्छा थी कि भारत, यूरोप से विज्ञान को ग्रहण करे और साथ ही अपने धर्म का बुद्धिसम्मत रूप संसार के सामने रखे। प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा आधुनिक प्रगतिवाद के बीच राजा राममोहन राय एक महान् पुल थे। इनकी मृत्यु इंग्लैण्ड के ब्रिस्टल में 1833 ई० में हुई। मिस काटेल ने उनकी जीवनी में लिखा है- “इतिहास में राममोहन राय का स्थान उस महासेतु के समान है, जिस पर चढ़कर भारतवर्ष अपने अथाह अतीत से अज्ञात भविष्य में प्रवेश करता है।

समाज सुधार- राजा राममोहन राय हिन्दू समाज की दशा सुधारने को बहुत उत्सुक थे। उन्होंने समाज में प्रचलित बहुविवाह तथा बालविवाह जैसी बुराइयों का खण्डन किया। स्त्री शिक्षा तथा स्त्रियों के समानाधिकार के वे प्रबल समर्थक थे। उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध शास्त्रार्थ नामक ग्रन्थ में कई निबन्ध लिखे। 1829 ई० में गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर इसके विरुद्ध बड़ा कानून बना दिया। यह कानून राममोहन राय के आन्दोलन का ही फल था। राजा राममोहन राय द्वारा प्रकाशित ‘संवाद कौमुदी’ और ‘मिरातुल अखबार’ ने भारतीय विचारों को बदलने तथा विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक सुधार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण के महान जनक की संज्ञा दी जा सकती है।

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