‘बह्म समाज’ की स्थापना 20 अगस्त, 1828 ई० में राजा राममोहन राय द्वारा की गई। मूर्तिपूजा का विरोध, एकेश्वरवाद में अटल विश्वास, बुद्धिवादी दृष्टिकोण तथा मानव धर्म आदि ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धान्त थे। उन्नीसवीं शताब्दी में अन्धविश्वास रूढ़ियों, ढोंगों एवं आडम्बरों ने हिन्दुत्व के सच्चे स्वरूप को ढक रखा था। ईसाई पादरी, हिन्दू समाज के अडम्बरों की आलोचना कर रहे थे। समाज में जाति प्रथा, छुआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह, निषेध, अन्धविश्वास, शिक्षा का अभाव आदि अनेक बुराइयाँ व्याप्त थी। ब्रह्म समाज ने इन सब बुराइयों का विरोध कर समाज की दशा सुधारने का महत्वपूर्ण कार्य किया। ब्रह्म समाज ने स्त्री शिक्षा पर जोर दिया और सती प्रथा एवं विधवा विवाह निषेध को गैर कानूनी घोषित कर इनके विरुद्ध कड़ा कानून बनवा दिया।
महाराष्ट्र में हिन्दू समाज और धर्म सुधार लाने का सबसे अधिक सफल प्रयास ‘प्रार्थना समाज’ ने किया। जिसकी स्थापना डॉ० आत्माराम पाण्डुरंग ने मार्च, 1867 ई० में बम्बई में की। प्रार्थना समाज का विकास ब्रह्म समाज की छत्रछाया में हुआ था। प्रार्थना समाज ने जाति-व्यवस्था एवं अस्पृशयता की निन्दा की, अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहित किया। स्त्री-पुरुष के विवाह में वृद्धि, स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन, विधवा विवाह का समर्थन प्रार्थना समाज का मुख्य ध्येय था। विधवाओं का पुनर्वास तथा बाल विधवा का संरक्षण आदि का प्रयास भी प्रार्थना समाज के द्वारा किया गया। इस प्रकार उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम कह सकते है। कि “ब्रह्म समाज एवं प्रार्थना समाज का प्रमुख उद्देश्य समाज सुधार था।”