11 सितम्बर, 2001 की घटना के बाद के वर्षों में ये व्यवधान एक प्रकार से निष्क्रिय जान पड़ने लगे थे, लेकिन धीरे-धीरे फिर प्रकट होने लगे। निःसन्देह विश्व में अमेरिका का वर्चस्व कायम है परन्तु अमेरिकी वर्चस्व की राह में मुख्य रूप से तीन व्यवधान हैं-
1. अमेरिका की संस्थागत बनावट-अमेरिका में शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया गया है। अर्थात् यहाँ शासन के तीन अंगों-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति का बँटवारा है। साथ ही शासन के तीनों अंगों के बीच अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को अपनाया गया है जिसके अनुसार शासन का एक अंग, दूसरे अंग पर नियन्त्रण भी रखता है। यहीं बनावट कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति के बे-लगाम प्रयोग पर अंकुश लगाने का काम करती है।
2. अमेरिकी समाज की उन्मुक्त प्रकृति-अमेरिका की शक्ति के सामने आने वाला दूसरा व्यवधान है-अमेरिकी समाज जो अपनी प्रकृति में उन्मुक्त है। अमेरिका में जन-संचार के साधन समय-समय पर वहाँ के जनमत को एक विशेष दिशा में मोड़ने की भले ही कोशिश करें, लेकिन अमेरिका की राजनीतिक संस्कृति में शासन के उद्देश्य और तरीके को लेकर गहरा सन्देह है। अमेरिका के विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश न रखने में यह बात बड़ी कारगर भूमिका निभाती है।
3. नाटो(उत्तर अटलाण्टिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन)द्वारा अंकुश-अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में आज सिर्फ एक ही ऐसा संगठन है जो सम्भवतया अमेरिकी ताकत पर अंकुश लगा सकता है और इस संगठन का नाम है-नाटो।
अमेरिका का हित नाटो में शामिल देशों के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि इन देशों में बाजार मूलक अर्थव्यवस्था चलती है इसी कारण इस बात की सम्भावना बनती है कि नाटो में शामिल अमेरिका के साथी देश उसके वर्चस्व पर कुछ अंकुश लगा सकें।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि नाटो में शामिल अमेरिकी साथी आगामी दिनों में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यवधान सिद्ध होंगे।