भारत-अमेरिकी समझौते से सम्बन्धित बहस के तीन अंश निम्नलिखित हैं-
(1) भारत के जो विद्वान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को सैन्य शक्ति के सन्दर्भ में देखते समझते हैं, वे भारत और अमेरिका की बढ़ती हुई नजदीकी से भयभीत हैं। ऐसे विद्वान यही चाहेंगे कि भारत वाशिंगटन से अपना लगाव बनाए रखे और अपना ध्यान अपनी राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने में लगाए।
(2) कुछ विद्वान मानते हैं कि भारत और अमेरिका के हितों में हेलमेल लगातार बढ़ रहा है और यह भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर है। ये विद्वान एक ऐसी रणनीति अपनाने की तरफदारी करते हैं जिससे भारत अमेरिकी वर्चस्व का फायदा उठाए। वे चाहते हैं कि दोनों के आपसी हितों का मेल हो और भारत अपने लिए सबसे बढ़िया विकल्प ढूँढ़ सके। इन विद्वानों की राय है कि अमेरिका के विरोध की रणनीति व्यर्थ साबित होगी और आगे चलकर इससे भारत को नुकसान होगा।
(3) कुछ विद्वानों की राय के बीच परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर समझौता हुआ। भारत के प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह और अन्य दो विपक्षी नेताओं के बीच लोकसभा में बहस हुई जिनके भाषण के अंशों के आधार पर उपर्युक्त तीनों अंशों की अलग-अलग वैचारिक स्थिति को निम्नलिखित रूप में वर्णित किया जा सकता है-
प्रथम-महोदय, मैं निवेदन करता हूँ कि वह भारत के प्रति विश्व की बदली हुई दशा को पहचाने। हमारे विचार में अमेरिका विश्व की एक महाशक्ति है। यह सही है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत का झुकाव सोवियत संघ की तरफ रहा परन्तु सोवियत संघ ही नहीं रहा। अत: भारत ने अपनी विदेश नीति को अमेरिका की ओर बदला है। सन् 1991 में भारत ने नई आर्थिक नीति की घोषणा की। डॉ. मनमोहन सिंह उस समय कांग्रेस पार्टी की सरकार में वित्तमन्त्री थे। तब भी और आज भी सरकार यह मानती है कि शक्ति की राजनीति बीते दिनों की बात नहीं कही जा सकती है। अत: जो अवसर आए हैं उनका लाभ हमें उठाना चाहिए। हमें संयुक्त राज्य अमेरिका से अच्छे सम्बन्ध बनाने चाहिए।
द्वितीय-महोदय, स्वतन्त्रता के बाद से हम अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति पर अमल करते आ रहे हैं। हमने अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी में मतदान के समय अमेरिका का पक्ष लिया और अमेरिका द्वारा लाए गए प्रस्तावों का समर्थन किया। हम पाकिस्तान के रास्ते ईरान से गैस लाना चाह रहे थे फिर भी हमने ईरान के विरोध में अमेरिका का पक्ष लिया। ऐसे में निश्चित रूप से हमारी विदेशी नीति कुप्रभावित होगी।
तृतीय-महोदय, हम इस सत्य तथ्य से आँखें नहीं मींच सकते कि अमेरिका एक-ध्रुवीय विश्व में एकमात्र महाशक्ति है। पर आज भारत भी विश्व में एक शक्ति बनकर उभर रहा है, हमें कूटनीति से काम लेते हुए अमेरिका से मधुर सम्बन्ध बनाए रखने चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में देशों के मध्य न तो मित्रता महत्त्वपूर्ण होती है और न ही शत्रुता, राष्ट्रीय हित सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं। अत: भारत को अमेरिका के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार रखना चाहिए।