सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों में जन आन्दोलनों की शानदार उपलब्धि रही है। चिपको आन्दोलन में उत्तराखण्ड के एक गाँव के स्त्री एवं पुरुषों ने पर्यावरण की सुरक्षा और जंगलों की कटाई का विरोध करने के लिए एक अनूठा प्रयास किया, जिसमें इन लोगों ने पेड़ों को अपनी बाँह में भर लिया ताकि उनको काटने से बचाया जा सके। इस आन्दोलन को व्यापक सफलता प्राप्त हुई।
जन आन्दोलनों का राजनीति से सम्बन्ध का पुराना इतिहास रहा है। जन आन्दोलन कभी राजनीतिक तो कभी सामाजिक आन्दोलन का रूप ले सकते हैं और अकसर यह दोनों ही रूपों में नजर आते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन को ही लें तो यह मुख्य रूप से राजनीतिक आन्दोलन था लेकिन औपनिवेशक काल में सामाजिक-आर्थिक मसलों पर भी विचार मन्थन चला जिससे अनेक स्वतन्त्र सामाजिक आन्दोलनों का जन्म हुआ; जैसे-जाति प्रथा विरोधी आन्दोलन, किसान सभा आन्दोलन और मजदूर संगठनों के आन्दोलन। इन आन्दोलनों ने सामाजिक संघर्षों के कुछ अन्दरूनी मुद्दे उठाए।
ऐसे ही कुछ आन्दोलन आजादी के बाद के दौर में भी चलते रहे। मुम्बई, कोलकाता और कानपुर जैसे बड़े शहरों के औद्योगिक मजदूरों के बीच मजदूर संगठनों के आन्दोलनों का बड़ा जोर था। सभी बड़ी पार्टियों ने इस तबके के मजदूरों को लामबन्द करने के लिए अपने-अपने मजदूर संगठन बनाए।