कहवा भी चाय की भाँति आधुनिक युग का एक पेय-पदार्थ है। अबीसीनिया के पठारी क्षेत्रों (इथोपिया-अफ्रीका) पर यह पौधा सबसे पहले उगा था। यहीं से इसकी कृषि का प्रचार अरब देशों में हुआ। यमन में इसका प्रसार अधिक हुआ है। यूरोपीय देशों में इसका प्रचार-प्रसार 17 वीं शताब्दी में हुआ। भारत में भी पश्चिमी समुद्रतटीय प्रदेश के दक्षिणी भाग में इसका विकास हुआ। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में इसका इतिहास केवल 100 वर्ष पुराना है।
कहवी एक वृक्ष के बीजों को सुखाकर तथा उन्हें भूनकर बारीक चूरे के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह चाय की अपेक्षा अधिक गर्म तथा नशीला होता है।
आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions
(1) जलवायु – कहवा उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु का पौधा है। यह 28° उत्तरी अक्षांशों से 38° दक्षिणी अक्षांशों तक उगाया जाता है, परन्तु 90% उत्पादन विषुवत् रेखा के दोनों ओर 24° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य 500 मीटर से 1,800 मीटर की ऊँचाई वाले भागों में किया जाता है। उष्णार्द्र जलवायु इसके लिए अधिक उपयुक्त रहती है।
⦁ तापक्रम – कहवा का वृक्ष 15° से 30° सेग्रे तक तापमानों में उत्पन्न होता है। तेज धूप से रक्षा के लिए इसे छायादार वृक्षों के साथ उगाया जाता है। पाला इसके लिए अधिक हानिकारक होता है। ताजी वायु एवं प्रकाश में इसकी वृद्धि अधिक होती है।
⦁ वर्षा – कहवा के पौधों को पर्याप्त आर्द्रता की आवश्यकता होती है। इसके लिए 150 से 250 सेमी वर्षा उपयुक्त रहती है, परन्तु पौधों की जड़ों में जल नहीं भरा रहना चाहिए तथा पकते समय वर्षा नहीं होनी चाहिए।
(2) मिट्टी एवं धरातल – पहाड़ी या पठारी ढालू भूमि उपयुक्त रहती है। कहवा मिट्टी के पोषक तत्त्वों को अधिक ग्रहण करता है; अतः उपजाऊ एवं घनी दोमट, जीवांशयुक्त, लौह एवं चूनायुक्त, खनिज एवं लावायुक्त मिट्टी उपयोगी रहती है। कांपयुक्त डेल्टाई मिट्टी में भी कहवा उगाया जाता है।
(3) मानवीय श्रम – कहवे की खेती के लिए सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक रूपसे कहवे के पौधे 15 मीटर तक ऊँचे होते हैं। अतः फल तोड़ने, बीज निकालने, सुखाने एवं कहवे की विभिन्न किस्में तैयार करने में प्रचुर मानवीय श्रम आवश्यक होता है।
विश्व में कहवा के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
Main Coffee Producing Areas in the World
अरब से विश्व के अनेक देशों में कहवे का प्रचार हुआ। किसी समय में इण्डोनेशिया में इसके बागात विकसित थे। श्रीलंका व भारत में भी कहवे के बागान लगाये गये, जो रोगग्रस्त हो गये। पश्चिमी द्वीप समूह में भी बागान लगाये गये, किन्तु अब वहाँ भी इसका महत्त्व घट गया है। वर्तमान समय में विश्व के कहवा उत्पादन देशों को निम्नलिखित चार वर्गों में रखा जा सकता है –
(1) दक्षिण अमेरिकी देश – ये देश विश्व का 3/4 कहवा उत्पन्न करते हैं। इनमें ब्राजील मुख्य उत्पादक देश है, जो विश्व का लगभग 1/3 कहवा उत्पन्न करता है। कोलम्बिया, इक्वेडोर, वेनेजुएला, गयाना अन्य उत्पादक देश हैं।
(2) मध्य अमेरिका व पश्चिमी द्वीप समूह – ये देश संसार को लगभग 1/8 कहवा उत्पन्न करते हैं। मैक्सिको, साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, निकारागुआ, पोटरिको, डोमीनिकन, कोस्टारिका, होन्डुरास, क्यूबा, हैटी, जमैका, ट्रिनिडाड आदि देश इसमें सम्मिलित हैं।
(3) अफ्रीकी देश – पश्चिमी व दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीकी देश-घाना, अंगोला, केन्या, इथोपिया, आइवरी कोस्ट, युगाण्डा, तन्जानिया, जायरे, कैमरून गणतन्त्र आदि इस क्षेत्र के प्रमुख कहवी उत्पादक देश हैं।
(4) दक्षिणी एशिया – इण्डोनेशिया, फिलीपीन्स, श्रीलंका, भारत, यमन आदि देश कहवा उत्पन्न करते हैं। इनका विस्तृत वर्णन अग्रलिखित है –
⦁ ब्राजील – यह विश्व का वृहत्तम कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 1/3से अधिक कहवी उत्पन्न किया जाता है। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में यहाँ विश्व का 3/4 कहवा उत्पन्न होता था। मिनास ग्रेस व साओपॉलो प्रमुख कहवा उत्पादक राज्य हैं। अकेले साओपॉलो राज्य से देश का 2/3 कहवा प्राप्त होता है। यहाँ हजारों हेक्टेयर में कहवा के बागान (फाजेन्डा) विस्तृत हैं। लौह तत्त्व युक्त टेरारोसा मिट्टियाँ एवं काली मिट्टी अत्यन्त उर्वर हैं। इटालवी श्रमिकों व टेक्नीशियनों की देख-रेख, सरकारी नियन्त्रण एवं प्रोत्साहन के कारण कहवा उत्पादन अत्यन्त विकसित है। साण्टोस बरियो डिजेनेरो पत्तनों से कहवा निर्यात किया जाता है। ‘कॉफी बीटिल’ नामक कीटाणु से कहवा क्षतिग्रस्त होता है।
⦁ कोलम्बिया – यह विश्व का तृतीय वृहत्तम कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 10% कहवी उत्पन्न होता है। यहाँ मध्यवर्ती श्रेणियों के पूर्वी तथा पश्चिमी ढालों पर 1,200 से 2,100 मीटर की ऊँचाई पर लावा की उर्वर मिट्टियाँ पायी जाती हैं। बोगोटा के पश्चिम में मागडालेना व दक्षिण में मैडेलीन नदियों के समीपवर्ती भागों में अधिक कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ के बागान छोटे आकार के हैं किन्तु कहवा उत्तम किस्म का है। यहाँ प्रति हेक्टेयर उत्पादन (632 किग्रा), ब्राजील (412 किग्रा) से अधिक है। काल्डास प्रदेश तथा एन्टीकुमा क्षेत्र में कहवा उत्पन्न मुख्य रूप से होता है। यहाँ कहवा के बागान ‘ग्वामो’ नामक छतरीनुमा वृक्षों की छाया में लगाये जाते हैं।
⦁ इण्डोनेशिया – यहाँ विश्व का 7% से अधिक कहवा उत्पन्न होता है। पूर्वी जावा में पर्वतीय ढाल प्रमुख कहवा उत्पादक हैं। यहाँ अक्सर कहवे की सम्पूर्ण फसल रोगग्रस्त होकर नष्ट हो जाती है।
⦁ भारत – यहाँ कहवे की बागाती खेती 1840 ई० में आरम्भ हुई। यहाँ विश्व का 4% से अधिक कहवा उत्पन्न किया जाता है। देश का 3/4 कहवा कर्नाटक राज्य से प्राप्त होता है। तमिलनाडु व केरल अन्य उत्पादक राज्य हैं।
⦁ इथोपिया – यहाँ विश्व का 3% से अधिक कहवा प्राप्त होता है। पूर्वी पठारी भाग पर जीमा, हरार उच्च भूमि एवं कॉफी प्रमुख उत्पादक हैं।
⦁ मैक्सिको – यहाँ विश्व का लगभग 4% कहवा उत्पन्न होता है। खाड़ी तटीय भाग एवं उत्तरी-पश्चिमी पर्वतीय ढाल प्रमुख उत्पादक हैं। यहाँ से संयुक्त राज्य को कहवा निर्यात किया जाता है।
⦁ आइवरी कोस्ट – यहाँ विश्व का 4% कहवा उत्पन्न होता है। गिनी खाड़ी का तटीय भाग मुख्य कहवा उत्पादक है। बड़ी मात्रा में कहवे का निर्यात होता है।
⦁ ग्वाटेमाला – यहाँ विश्व का लगभग 4% कहवा उत्पन्न होता है। यहाँ सान मारकोस, साण्टा रोजा, तिजालते, नागो व सुचिते पेकेज मुख्य उत्पादक प्रान्त हैं।
⦁ कोस्टारिका – यह मध्य अमेरिकी देश विश्व का 2% से अधिक कहवा उत्पन्न करता है। यहाँ से संयुक्त राज्य को कहवा निर्यात किया जाता है।
⦁ फिलीपीन्स – यहाँ विश्व का लगभग 2% कहवा उत्पन्न होता है।
⦁ अन्य उत्पादक देश – अफ्रीका में – जायरे, कैमरून, मलागासी, केन्या, अंगोला, गैबोन: एशिया में– यमन; दक्षिणी अमेरिका में इक्वेडोर, पीरू, अर्जेण्टाइना तथा ओशेनिया में-पापुआ न्यूगिनी अन्य महत्त्वपूर्ण कहवा उत्पादक हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
चाय की भाँति कहवे का उपभोग भी विकसित राष्ट्रों में अधिक होता है, जबकि इसका उत्पादन विकासशील तथा अविकसित देशों में होता है। विश्व में कुल कहवा आयात में 90% विकसित राष्ट्रों को योगदान है। अकेला संयुक्त राज्य ही कुल आयात का आधा भाग आयात करता है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि विकसित राष्ट्र अन्य प्रमुख आयातक हैं। निर्यातक देशों में ब्राजील, कोलम्बिया, मैक्सिको, अफ्रीकी देश, मध्य अमेरिकी देश, भारत, यमन व फिलीपीन्स हैं। कुल निर्यात का लगभग 45% ब्राजील व कोलम्बिया से, 25% अफ्रीकी देशों से, 20% मध्य अमेरिकी देशों व 5% इण्डोनेशिया से प्राप्त होता है।