जूट एक रेशेदार एवं मुद्रादायिनी कृषि उपज है। यह एक पौधे के तने पर छाल के नीचे से प्राप्त होता है। अनुमान किया जाता है कि सन् 1743 में चीन में जूट के रेशे का उपयोग किया जाता था। बंगाल में जूट के बोरे बनाने का उल्लेख 16वीं तथा 17 वीं शताब्दी में मिलता है तथा सम्भावना व्यक्त की गयी है कि भारत से ही जूट का पौधा अन्य देशों में फैला। इसकी कृषि देश के उन्हीं क्षेत्रों में विकसित हुई। है, जहाँ पर मिट्टी एवं जलवायु चीन के समान थी। जूट से प्राप्त रेशे से टाट, बोरे, सुतली, कालीन, पैकिंग करने के वस्त्र तथा अन्य मोटे प्रकार के वस्त्र आदि वस्तुएँ बनायी जाती हैं। इस प्रकार इसके औद्योगिक महत्त्व को देखते हुए इसे स्वर्णिम रेशा नाम दिया गया है।
जूट के लिए भौगोलिक दशाएँ
Geographical Conditions for Jute
(1) जलवायु – जूट मानसूनी जलवायु की उपज है। यह उष्णाई प्रदेशों का पौधा है, परन्तु सभी उष्णार्द्र प्रदेशों में नहीं उगाया जाता।
⦁ तापमान – जूट की कृषि के लिए उच्च तापमान होना आवश्यक है। इसके लिए 27° से। 37° सेग्रे तापमान उपयुक्त रहता है। स्वच्छ आकाश एवं तेज धूप इसकी फसल के लिए अधिक उपयुक्त रहती है।
⦁ वर्षा – जूट के पौधे के विकास के लिए 180 से 250 सेमी वार्षिक वर्षा अधिक उपयुक्त रहती है। यदि वर्षा एवं धूप बारी-बारी से मिलती रहें तो इसके पौधे का विकास तीव्रता से होता है, परन्तु खेतों में जल हर समय भरा रहना चाहिए।
(2) मिट्टी – जूट चिकनी मिट्टी से लेकर बलुई-दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है, परन्तु नदियों के बाढ़ वाले मैदानों तथा क्षारयुक्त मिट्टी में इसका उत्पादन सरलता से किया जा सकता है। इसी कारण डेल्टाई भागों की नवीन कांप मिट्टी में इसकी कृषि अधिक की जाती है। जूट का पौधा मिट्टी के उर्वरक तत्त्वों का शोषण अधिक करता है; अतः भूमि को समय-समय पर रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है।
(3) धरातल – जूट के पौधों को अपेक्षाकृत ऊँचे खेतों में बोया जाता है। प्रायः इसकी खेती समुद्रतट पर ही होती है। सामान्यत: चावल उत्पन्न करने वाले खेतों में इसे साथ ही उगाया जा सकता है।
(4) मानवीय श्रम – जूट बोने, पौधों की कटाई करने तथा रेशा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसी कारण एशिया महाद्वीप के सघन जनसंख्या वाले प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है।
विश्व में जूट का उत्पादन
Production of Jute in the World
विभाजन से पूर्व भारत विश्व में सर्वाधिक जूट उत्पन्न करने वाला देश था, परन्तु देश के विभाजन के बाद जूट उत्पादन का अधिकांश क्षेत्र बांग्लादेश में चला गया। अत: इसकी कृषि के लिए भारत को पुन: प्रयास करने पड़े। जूट उत्पादन में देश अब आत्मनिर्भर हो गया है तथा विदेशों को निर्यात भी करने लगा है। इस प्रकार जूट उत्पादन का 24.4% भाग बांग्लादेश से, 5.3% चीन से तथा 62.8% भारत से प्राप्त होता है। शेष उत्पादन ब्राजील, हिन्द-चीन, इण्डोनेशिया, ताईवान, नेपाल, जायरे (कांगो गणतन्त्र) से प्राप्त होता है।
(1) भारत – भारत का जूट उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है, जहाँ विश्व के 62.8% जूट का उत्पादन किया जाता है। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टाई भाग जूट के उत्पादन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं। कुल जूट उत्पादन का 90% भाग पश्चिम बंगाल, बिहार एवं असम राज्यों से प्राप्त होता है। गंगा नदी के दक्षिणी मुहाने पर जूट की खेती कम की जाती है, क्योंकि यहाँ पर भूमि नीची होने के कारण जूट उत्पादन के अनुकूल नहीं है। इन राज्यों में उपयुक्त जलवायु के साथ-साथ कुछ अन्य सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं, जो निम्नलिखित हैं –
⦁ सस्ते एवं कुशल श्रमिक
⦁ सिंचाई एवं आवागमन के सस्ते साधन
⦁ विश्व बाजार में एकाधिकार
⦁ उत्पादकों का परम्परागत अनुभव एवं
⦁ सरकारी तथा गैर-सरकारी प्रोत्साहन।
वर्तमान समय में भारत के जूट उत्पादन को कुछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। कुछ देशों में अन्य रेशों का भी प्रचार बढ़ा है; जैसे-रूस एवं अर्जेण्टाइना में सन, फ्लेक्स; कनाडा, अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया में कागज, प्लास्टिक एवं कपड़े से बने बोरों का उपयोग जूट के बोरों के प्रतिस्थापन के रूप में किया जाने लगा है, परन्तु भारत में जूट से बने बोरे अन्य पदार्थों से बने बोरों से अधिक लाभदायक हैं; अतः जूट का उत्पादन भारत के लिए वरदान सिद्ध हुआ है।
(2) बांग्लादेश – जूट के उत्पादन में बांग्लादेश विश्व में 1970 ई० से प्रथम स्थान पर था, परन्तु अब दूसरे स्थान पर हो गया है तथा कुल उत्पादन में इसका भाग कम होता जा रहा है। यहाँ विश्व का एक-चौथाई जूट का उत्पादन ही शेष है। बांग्लादेश में जूट उत्पादन की सभी आवश्यक भौगोलिक सुविधाएँ मिलती हैं, परन्तु अन्य देशों में जूट का उत्पादन प्रारम्भ हो जाने से बांग्लादेश का प्रतिशत विश्व जूट उत्पादन में गिरता जा रहा है। यहाँ जूट के प्रमुख उत्पादक जिले बोगरा, दिनाजपुर, खुलना, जैस्सोर, रंगपुर, देबरा, सिरसागंज, पवना, ढाका, मैमनसिंह एवं फरीदपुर हैं जो मेघना एवं ब्रह्मपुत्र नदियों की बाढ़ों द्वारा प्रभावित हैं। जूट बांग्लादेश की प्रमुख उपज हे तथा राष्ट्रीय आय में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
(3) चीन – जूट के उत्पादन में चीन विश्व में तीसरे स्थान पर है। यहाँ विश्व का 5.3% जूट पैदा होता है। यहाँ जूट की खेती विस्तृत पैमाने पर की जाने लगी है। चीन में जूट उत्पादन की सभी अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ पायी जाती हैं। दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्रों में जूट यांगटिसीक्यांग एवं सीक्यांग नदियों के डेल्टाई भागों में उगाई जाती है। दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्रों में जूट उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है तथा चीन में जूट का भविष्य इस क्षेत्र के उत्पादन पर निर्भर करता है।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार – जूट का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी अधिक माँग कृषि-प्रधान तथा औद्योगिक देशों में रहती है।
भारत से कच्चे जूट का निर्यात बहुत ही कम किया जाता है, बल्कि भारत कच्चे जूट का अधिकांश आयात बांग्लादेश से करता है तथा अपने कारखानों द्वारा माल तैयार कराकर विदेशों को निर्यात कर देता है।
आयातक देश – संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि।
निर्यातक देश – भारत, चीन, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, म्यांमार, ब्राजील आदि।