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पुरुष-महिला अनुपात अथवा लिंगानुपात, (ब) जनसंख्या की आयु-संरचना, (स) भारत में साक्षरता, (द) जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना, (य) ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या।

या

भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत का लिंगानुपात या लिंगानुपात से आप क्या समझते हैं? बताइए।

या

भारत में लिंगानुपात की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

या

लिंगानुपात से आप क्या समझते हैं?

या

भारत में लिंगानुपात की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

या

भारत की जनगणना, 2011 के अनुसार भारत का लिंगानुपात बताइए। 

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अ) पुरुष-महिला अनुपात अथवा लिंगानुपात

Sex-Ratio

भारत में सन् 2011 ई० की जनगणना के अनुसार 62.37 करोड़ पुरुष (51.53%) तथा 58.65 करोड़ महिलाएँ (48.46%) हैं। इस प्रकार प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे 940 महिलाएँ हैं। इस अनुपात के सम्बन्ध में एक विशेष बात यह है कि पिछले 100 वर्षों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की तुलना में निरन्तर कम होती गयी है। सन् 2001 में प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे 933 महिलाएँ थीं।

भारत में लिंगानुपात Sex Ratio in India


पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या में कमी के निम्नलिखित तीन कारण हो सकते हैं –

⦁    भारत में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष-शिशुओं का जन्म अधिक होता है।
⦁    भारत के अनेक प्रदेशों में महिला-शिशुओं की देखभाल कम होने अथवा प्रसूति अवस्था में मृत्यु-दर का अधिक होना है।
⦁    भारत में बाल-विवाह प्रथा प्रचलित है और कम आयु में लड़कियों को सातृत्व का भार वहन न कर पाने के कारण बहुत-सी लड़कियों की प्रसूति काल में अकाल मृत्यु हो जाती है।
भारतीय ग्रामीण समाज में प्रसूतावस्था में महिलाओं की उचित देखभाल न हो पाने के कारण वे रोगग्रस्त हो जाती हैं जिससे महिलाओं की संख्या में कमी की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। देश के उत्तरी क्षेत्रों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या कम है, परन्तु ज्यों-ज्यों दक्षिण की ओर बढ़ते जाते हैं, महिलाओं की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती जाती है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार केरल राज्य में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या सबसे अधिक (1,084) है।

(ब) जनसंख्या की आयु-संरचना
Age Structure of Population

भारत में उच्च जन्म-दर ने आयु-संरचना को एक वृहत् आधार प्रदान किया है जो ऊपर की ओर छोटा होता जाता है। इसे जनांकिकी में युवा जनसंख्या कहा जाता है। प्रायः4 वर्ष की आयु तक शिशु,5 से 14 वर्ष तक की आयु वालों को किशोर-किशोरियाँ, 15 से 29 वर्ष की आयु वालों को नवयुवक-नवयुवतियाँ, 30 से 50 वर्ष तक की आयु वालों को अधेड़ तथा इससे अधिक आयु वालों को वयोवृद्ध माना जाता है। इस आधार पर देश की 44% जनसंख्या 56% जनसंख्या पर आश्रित है, जो अधिकांशत: 15 से 60 वर्ष की आयु-वर्ग के मध्य है। वास्तव में यही जनसंख्या कार्यशील कहलाती है।

आयु-संरचना Age Structure

आयु – संरचना के सम्बन्ध में एक प्रमुख तथ्य यह है कि पिछले 40 वर्षों में जनसंख्या की प्रत्याशित आयु में निरन्तर वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण असाध्य रोगों पर नियन्त्रण किया जाना है, जिससे बाल मृत्यु-दर एवं सामान्य मृत्यु-दर में कमी आयी है।

(स) भारत में साक्षरता
Literacy in India

साक्षर से तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है जो किसी भाषा को सामान्य रूप से लिख-पढ़ सकता है। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार भारत में केवल 5.35% व्यक्ति साक्षर थे। सन् 1951 तक यह प्रतिशत मन्द गति से बढ़ा। इस वर्ष यह प्रतिशत 18.33 हो गया था, जबकि इसके बाद इस प्रतिशत में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। सन् 1981 में यह प्रतिशत 43.57 हो गया जो सन् 1991 में बढ़कर 52.21% हो गया। सन् 2001 में साक्षरता 64.8% हो गयी। यद्यपि पिछले 80 वर्षों में महिला साक्षरता में पुरुष साक्षरता की अपेक्षा अधिक वृद्धि हुई है तो भी साक्षरता में पुरुषों की ही संख्या अधिक रही है। सन् 1901 में पुरुषों की साक्षरता 9.8% थी सन् 1991 में यह बढ़कर 64.13% हो गयी है। सन् 1901 में महिला साक्षरता 0.6% थी जो सन् 2001 में बढ़कर 54.16% हो गयी है। सन् 2011 में यह 74.04% हो गयी। यह प्रतिशत नगरों की अपेक्षा ग्रामों में काफी कम है। ग्रामीण जनसंख्या का 40% भाग तथा नगरीय जनसंख्या का 20% भाग आज भी अशिक्षित है।
राज्यों के अनुसार साक्षरता की दर सबसे अधिक केरल राज्य में है, जो सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 93.91% थी, जबकि सबसे कम बिहार में 63.82% है। केरल राज्य ने पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। देश में साक्षरता के स्तर में वृद्धि करना अति आवश्यक है जिससे देशवासी विकास–योजनाओं को समझ सकें तथा देश के आर्थिक विकास में वृद्धि की जा सके।

(द) जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना
Occupational Structure of Population

व्यावसायिक संरचना के अनुसार भारत की लगभग 65% जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी हुई है, जबकि उद्योग-धन्धों में केवल 12% जनसंख्या ही लगी है। देश में विभिन्न जनगणना वर्षों में कार्यशील जनसंख्या का प्रतिशत इस प्रकार रहा है-1911 में 48.2%, 1921 में 47.1%, 1931 में 46.6%, 1951 में 46%, 1961 में 45%, 1981 में 42% तथा 1991 में 37.3% तथा 2011 में 21.3%। इन आँकड़ों से ज्ञात होता है कि भारत की कुल जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या पर आश्रित जनसंख्या का भार बढ़ता जा रहा है। कार्यशील जनसंख्या का लमभग 65% भाग कृषि-कार्यों पर निर्भर करता है।

भारत में कृषि पर निर्भर रहने वाली जनसंख्या की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। सन् 2011 में कुल जनसंख्या का 65% भाग कृषि-कार्य पर निर्भर था। राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता कम की जाये तथा उसे अन्य कार्यों; जैसे-उद्योग-धन्धों, व्यापार, परिवहन, निर्माण आदि कार्यों की ओर उन्मुख किया जाये।

(य) ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या
Rural and Urban Population

भारत वास्तविक रूप से ग्रामों का देश है। आज भी देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग ग्रामों में निवास करता है। सन् 1891 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या का केवल 9.5% भाग नगरों में निवास करता था तथा 90.5% जनसंख्या ग्रामों में निवास करती थी। सन् 1891 से लेकर सन् 1941 तक नगरीय जनसंख्या के अनुपात में बहुत ही मन्द गति से वृद्धि हुई तथा यह प्रतिशत 10 से 14 के मध्य ही रहा। सन् 1951 में नगरीय जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई तथा देश की 17.34% जनसंख्या नगरों में निवास करने लगी थी। इस वृद्धि का प्रमुख कारण देश के विभाजन के फलस्वरूप पाकिस्तान से आने वाले विस्थापितों एवं शरणार्थियों को नगरों में बस जाना था। सन् 1961 की जनगणना के अनुसार 82.1% जनसंख्या ग्रामों में रह रही थी। इस वर्ष 17.9% जनसंख्या नगरों में रहती थी।

सन् 1981 की जनगणना के अनुसार देश में लगभग 5.5 लाख ग्राम और 3,245 नगर थे। इस प्रकार इन ग्रामों में 76.27% तथा नगरों में 23.73% जनसंख्या निवास कर रही थी, जबकि सन् 1991 की जनगणना के अनुसार 74.28% जनसंख्या ग्रामों में तथा 25.72% जनसंख्या नगरों में निवास कर रही थी। सन् 2011 की जनगणना में देश में लगभग 6.41 लाख ग्राम व 7,936 नगर थे। सन् 2011 में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत बढ़कर 31.16 तथा ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत घनत्व घटकर 68.84 रह गया है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि भारत में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत धीरे-धीरे घटता जा रहा है तथा नगरों की संख्या तथा उनकी जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
प्रो० ब्लॉश के अनुसार, “भारत ग्रामीण अधिवास का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है। भारत में ग्रामीण जीवन बड़ी विकसित अवस्था में है। ये ग्राम भारतीय संस्कृति का आधार-स्तम्भ रहे हैं। ग्रामीण जीवन संगठन पर आधारित होता है। प्राचीन काल में गाँव तो स्वावलम्बी ही होते थे जिनमें पारस्परिक सहयोग की भावना होती थी।

भारतीय ग्रामों का जन्म सहकारिता के आधार पर माना जाता है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों से व्यक्तिवाद की भावना में वृद्धि, संयुक्त परिवार प्रथा का विघटन, आधुनिक एवं पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव, परिवहन साधनों का विकास, नगरों में उद्योग-धन्धों के विकसित हो जाने के कारण ग्रामीण जनसंख्या का नगरों की ओर प्रवास एवं ग्रामीण लघु-कुटीर उद्योग-धन्धों का विनाश आदि ऐसे आर्थिक एवं सामाजिक कारण रहे हैं जिनसे ग्रामों का प्राचीन वैभव नष्ट होता जा रहा है, जबकि आज भी देश की लगभग तीन-चौथाई जनसंख्या ग्रामों में ही निवास कर रही है। भारत धीरे-धीरे नगरीकरण की ओर अग्रसर होता जा रहा है।

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