भारत में नगरीकरण के कारण
Causes of Urbanization in India
भारत के नगरों के विकास के मुख्यतः अग्रलिखित कारण रहे हैं –
⦁ रेलों के विकास के कारण व्यापार महत्त्वपूर्ण स्टेशनों के मार्गों द्वारा होने लगा।
⦁ भयानक दुर्भिक्षों के कारण बड़े पैमाने पर किसान बेरोजगार हो गये। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार न मिल सकने के कारण जनसंख्या का रोजगार की तलाश में नगरों की ओर प्रवास होने लगा।
⦁ भूमिहीन श्रम वर्ग के विकास के कारण ही नगरीकरण प्रोत्साहित हुआ। इस वर्ग के जिन लोगों को नगर क्षेत्रों में स्थायी रोजगार अथवा अपेक्षाकृत ऊँची मजदूरी मिल गयी, वे वहीं बस गये।
⦁ नगरों के आकर्षण के कारण धनी जमींदारों के नगरों में बसने की प्रवृत्ति भी बढ़ी। नगरों में । कुछ ऐसे आकर्षण थे, जिनका गाँवों में अभाव था।
⦁ नये उद्योगों की स्थापना अथवा पुराने उद्योगों के विस्तार के कारण श्रम-शक्ति नगरों में खपने लगी।
उपर्युक्त कारणों के विश्लेषण के पश्चात् प्रो० डी० आर० गाडगिल इस निष्कर्ष पर पहुँचे, ‘‘इने सब कारणों में उद्योगों का विकास अन्य सभी देशों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण रहा है, किन्तु भारत में इसका प्रभाव निश्चय ही इतना सशक्त नहीं रहा। सच तो यह है कि भारत में बहुत कम ऐसे नगर हैं। जिनका उद्भव नये उद्योगों के कारण हुआ है।
भारत में औद्योगीकरण का निश्चित प्रभाव जनसंख्या को ग्रामीण क्षेत्रों से स्थानान्तरित करने की दृष्टि से प्रबल रूप से व्यक्त नहीं हुआ। इसका प्रमाण यह है कि भारत में कुल श्रमिकों की सामान्य वृद्धि के साथ कृषि और गैर-कृषि श्रमिकों दोनों की संख्या में एक साथ वृद्धि हुई है। औद्योगीकरण के प्रबल प्रभाव के फलस्वरूप कृषि-श्रमिकों का अनुपात गैर कृषि-श्रमिकों के अनुपात की तुलना में काफी कम हो जाना चाहिए था।
नगरीकरण से उत्पन्न समस्याएँ या प्रभाव या परिणाम
Problems or Effects or Results Produced by Urbanization
भारत में तेजी से बढ़ते हुए नगरीकरण से निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं –
(1) अपर्याप्त आधारभूत ढाँचा और सेवाएँ – यद्यपि नगरीकरण की तीव्रता से विकास प्रकट होता है, परन्तु अति तीव्र नगरीकरण से नगरों में नगरीय सेवाओं और सुविधाओं की कमी हो जाती है। यह सर्वविदित तथ्य है कि मैट्रोपोलिटन नगरों की 30% से 40% तक जनसंख्या गन्दी बस्तियों में रहती है। ऐसी आवास-विहीन जनसंख्या भी बहुत अधिक है जिसका जीवन-स्तर बहुत निम्न होता है।
(2) परिवहन की असुविधा – नगरों में भीड़ बढ़ने से परिवहन की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(3) अपराध बढ़ जाते हैं – आज नगरों में अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है, जो तेजी से बढ़ती हुई नगरीय जनसंख्या का परिणाम है।
(4) आवास की कमी – जितनी तेजी से नगरों की जनसंख्या बढ़ रही है उतनी तेजी से आवासों का निर्माण नहीं हो पाता; अत: आवासों की भारी कमी चल रही है।
(5) औद्योगीकरण – नगरों का विकास हो जाने के कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया बढ़ गयी है। प्राचीन युग के उद्योग-धन्धे समाप्त हो गये हैं। इन उद्योग-धन्धों के विकास के कारण भारत में सामाजिक संगठन में परिवर्तन हुए हैं। पूँजीपति एवं श्रमिक वर्ग के बीच संघर्ष बढ़ गये हैं। स्त्रियों में आत्मनिर्भरता बढ़ गयी है। व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने लगे हैं। कारखानों की स्थापना, गन्दी बस्तियों की समस्याओं व हड़तालों आदि के कारण जीवन में अनिश्चितता आ गयी है।
(6) द्वितीयक समूहों की प्रधानता – नगरीकरण के कारण भारत में परिवार, पड़ोस आदि जैसे प्राथमिक समूह प्रभावहीन होते जा रहे हैं। वहाँ पर समितियों, संस्थाओं एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा ही सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना होती है। इस प्रकार के सम्बन्धों में अवैयक्तिकता पायी जाती है।
(7) अवैयक्तिक सम्बन्धों की अधिकता – नगरीकरण के कारण नगरों में जनसंख्या में वृद्धि हो गयी है। जनसंख्या की इस वृद्धि के कारण लोगों में व्यक्तिगत सम्बन्धों की सम्भावना कम हो गयी,है। इसी आधार पर आर० एन० मोरिस ने लिखा है कि जैसे-जैसे नगर विस्तृत हो जाते हैं वैसे-वैसे इस बात की सम्भावना भी कम हो जाती है कि दो व्यक्ति एक-दूसरे को जानेंगे। नगरों में सामाजिक सम्पर्क अवैयक्तिक, क्षणिक, अनावश्यक तथा खण्डात्मक होता है।
(8) पारम्परिक सामाजिक मूल्यों की प्रभावहीनता – नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी विचारधारा का विकास हुआ है। इस विचारधारा के कारण प्राचीन सामाजिक मूल्यों का प्रभाव कम हो गया है। प्राचीन समय में बड़ों का आदर, तीर्थ स्थानों की पवित्रता, ब्राह्मण, गाय तथा गंगा के प्रति श्रद्धा और धार्मिक संस्थानों की मान्यता थी, परिवार की सामाजिक स्थिति का ध्यान रखा जाता था, किन्तु आज नगरों का विकास हो जाने से प्राचीन सामाजिक मूल्य प्रभावहीन हो गये हैं। उनका स्थान भौतिकवाद तथा व्यक्तिवाद ने ले लिया है।
(9) श्रम-विभाजन और विशेषीकरण – नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के विकास के कारण आज विभिन्न देशों में कुशल कारीगरों का महत्त्व बढ़ गया है। कोई डॉक्टर है, कोई वकील है और कोई इन्जीनियर। डॉक्टरों, वकीलों तथा इन्जीनियरों के भी अपने विशिष्ट क्षेत्र हो गये हैं।
(10) अन्धविश्वासों की समाप्ति – अभी तक भारत में धार्मिक विश्वासों पर आँख मींचकर चलने की प्रथा थी, किन्तु आज विज्ञान ने दृष्टिकोण की संकीर्णता को व्यापक बना दिया है। अनेक आविष्कारों के कारण व्यक्ति को दृष्टिकोण तार्किक हो गया है।
(11) जातीय नियन्त्रण का अभाव – अभी तक भारतीय समाज में जाति-प्रथा के कारण बाल-विवाह, विधवा-विवाह निषेध, पर्दा-प्रथा, विवाह-संस्कार व स्त्रियों की निम्न दशा का प्रचलन था, किन्तु आज नगरीकरण के कारण शिक्षा का प्रसार हुआ है और भारत में विवाह सम्बन्धी अधिनियम को पारित करके विवाह सम्बन्धी मान्यता को बदल दिया गया है। आज विवाह की आयु निर्धारित कर दी गयी है, बाल-विवाह समाप्त हुए हैं, अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन मिला है, विधवा पुनर्विवाह आरम्भ हो गया है। जाति के सभी प्रतिमान बदल गये हैं, यातायात के साधनों का विकास हो जाने से जाति-पाँति के बन्धन टूट गये हैं।
नगरीकरण से उत्पन्न समस्याओं का समाधान
Solution of the Problems Produced by Urbanization
⦁ आवासीय भूमि का विकास – नगरीकरण से जनसंख्या की वृद्धि होने से आवासीय भवनों की कमी हो जाती है। इसलिए नये आवासीय क्षेत्रों को विकसित करना चाहिए जिससे नगर के केन्द्रीय भाग में आवासों (मकानों) का जमघट न बढ़े। नयी आवासीय बस्तियों के विकास से नगर केन्द्रों पर जनसंख्या का भार घटता है। निवासियों को नियमित आवास भी प्राप्त होते हैं।
⦁ सड़क परिवहन व्यवस्था में सुधार – नगरों की एक बड़ी समस्या सड़कों पर अतिक्रमण है। गैर-आवासीय या बाजार क्षेत्रों में यह समस्या विकट परिस्थितियाँ पैदा करती है। सड़कों पर चलती-फिरती दुकानों, ठेलों, वाहनों आदि का जमघट सड़कों को तंग बना देता है। इस समस्या के निवारण के लिए उपयुक्त उपाय अपनाने चाहिए। पार्किंग आदि की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए
⦁ पेयजल, जल-मल निकास-सफाई आदि की व्यवस्था – नगरों में पेयजल, बिजली, जल-मल निकास आदि की भारी समस्याएँ रहती हैं। इनके लिए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए। नाली-नालों की सफाई, कूड़ा-करकट तथा मल निकास की उपयुक्त व्यवस्था आवश्यक है।
⦁ मलिन बस्तियों की उचित व्यवस्था – निर्धन मजदूर, बेरोजगार, गाँवों से पलायन करने वाले लोग शहरों के महँगे मकान खरीदने या किराये पर लेने में असमर्थ होते हैं; अतः वे नगर के बाहर या सड़कों के किनारे झुग्गी-झोंपड़ी डालकर रहते हैं। ऐसी मलिन बस्तियों में बिजली, पानी, सड़कों, नालियों की कोई व्यवस्था नहीं होती। प्रायः यहाँ सामाजिक अपराध पनपते हैं। अत: इनका सुधार करना। आवश्यक है।
⦁ आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई – नगरों में जनसंख्या बढ़ने पर दैनिक उपभोग की वस्तुओं; जैसे—दूध, अण्डे, सब्जी, फल आदि की कमी हो जाती है। अतः इनकी पर्याप्त उपलब्धता की व्यवस्था होनी चाहिए।
⦁ प्रदूषण पर नियन्त्रण – नगरों में छोटे-बड़े अनेक उद्योग स्थापित हो जाते हैं जो पर्यावरण को दूषित करते हैं। अत: उद्योगों को नगर के बाहर विशिष्ट क्षेत्र में स्थानान्तरित करना चाहिए तथा कारखानों से होने वाले प्रदूषण पर भी नियन्त्रण करना चाहिए।