भारत गाँवों का देश है। ब्रिटिश राज में गाँवों की आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था शोचनीय हो गयी थी; अत: स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद देश में पंचायती राज व्यवस्था द्वारा गाँवों में राजनीतिक तथा आर्थिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण का प्रयास किया गया। बलवन्त राय मेहता समिति ने पंचायती राज व्यवस्था के लिए त्रि-स्तरीय योजना का परामर्श दिया। इस योजना में सबसे निचले। स्तर पर ग्राम सभा और ग्राम पंचायतें हैं। स्तर पर क्षेत्र समितियाँ तथा उच्च स्तर पर जिला परिषदों की व्यवस्था की गयी थी।
भारतीय गाँवों में बहुत पहले से ही ग्राम पंचायतों की व्यवस्था रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने संयुक्त प्रान्तीय पंचायत राज कानून बनाकर पंचायतों के संगठन सम्बन्धी उल्लेखनीय कार्य को किया था। सन् 1947 ई० के इस कानून के अनुसार ग्राम पंचायत के स्थान पर ग्राम सभा, ग्राम पंचायत और न्याय पंचायत की व्यवस्था की गयी थी। अब उत्तर प्रदेश पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 के अनुसार भी ग्राम सभा, ग्राम पंचायत तथा न्याय पंचायत की ही व्यवस्था को रखा गया है।
ग्राम पंचायत के कार्य तथा शक्तियाँ
प्रत्येक ग्राम में एक ग्राम सभा’ होती है। गाँव का प्रत्येक वयस्क व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होता है। ग्राम पंचायत को चयन ग्राम सभा के द्वारा किया जाता है। ग्राम पंचायत के चुनाव गुप्त मतदान के द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर किये जाते हैं। पंचायत के सरपंच का चुनाव पंचायत के सम्पूर्ण निर्वाचित मण्डल द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। ग्राम पंचायत, पंचायती राज-व्यवस्था की सबसे छोटी आधारभूत इकाई है। यह ग्राम सरकार की कार्यपालिका के रूप में कार्य करती है।
ग्राम पंचायत के कार्यों तथा शक्तियों की विवेचना निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत की जा सकती है-
1. सार्वजनिक कार्य – सार्वजनिक कार्यों के अन्तर्गत
⦁ गाँव की सफाई की व्यवस्था करना
⦁ रोशनी का प्रबन्ध करना
⦁ संक्रामक रोगों की रोकथाम करना
⦁ गाँव एवं गाँव की इमारतों की रक्षा करना
⦁ जन्म-मरण का लेखा-जोखा रखना
⦁ बालक एवं बालिकाओं की शिक्षा की समुचित व्यवस्था करना
⦁ खेलकूद की व्यवस्था करना
⦁ कृषि की उन्नति का प्रयत्न करना
⦁ श्मशान भूमि की व्यवस्था करना
⦁ सार्वजनिक चरागाहों की व्यवस्था करना
⦁ आग बुझाने का प्रबन्ध करना
⦁ जनगणना और पशुगणना करना
⦁ प्राथमिक चिकित्सा का प्रबन्ध करना
⦁ खाद एकत्र करने के लिए स्थान निश्चित करना
⦁ जल मार्गों की सुरक्षा का प्रबन्ध करना
⦁ प्रसूति-गृह खोलना
⦁ कानून द्वारा सौंपा गया कोई और कार्य करना
⦁ आदर्श नागरिकता की भावना को प्रोत्साहन देना तथा
⦁ ग्रामीण जनता को शासन व्यवस्था से परिचित कराना आदि कार्य आते हैं।
2. व्यवसाय – सम्बन्धी कार्य – इन कार्यों के अन्तर्गत
⦁ अस्पताल खुलवाना
⦁ पुस्तकालय एवं वाचनालयों की व्यवस्था करना
⦁ पार्क बनवाना
⦁ गृह-उद्योगों को उन्नत करने का प्रयत्न करना
⦁ पशुओं की नस्ल सुधारना
⦁ स्वयंसेवक दल का संगठन करना
⦁ सहकारी समितियों का गठन करना
⦁ सहकारी ऋण प्राप्त करने में किसानों की सहायता करना
⦁ अकाल या अन्य विपत्ति के समय गाँव वालों की सहायता करना
⦁ सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाना आदि कार्य सम्मिलित होते हैं।
3. न्याय-सम्बन्धी कार्य – इन कार्यों के अन्तर्गत, ग्राम पंचायत के कुछ सदस्य न्याय पंचायत के रूप में कार्य करते हुए अपने गाँव के छोटे-छोटे झगड़ों का निपटारा भी करते हैं। दीवानी के मामलों में ये हैं 500 के मूल्य तक की सम्पत्ति के मामलों की सुनवाई कर सकते हैं तथा फौजदारी के मुकदमों में इसे ₹ 250 तक का जुर्माना करने का अधिकार प्राप्त है।
भारतीय संविधान में किये गये 73वें संशोधन के द्वारा ग्राम पंचायत को व्यापक अधिकार एवं शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। साथ ही ग्राम पंचायत के कार्य-क्षेत्र को भी व्यापक बनाया गया है। जिसके अन्तर्गत 29 नियमों से युक्त एक विस्तृत सूची को रखा गया है।
आय के स्रोत – ग्राम पंचायतों की आय के मुख्य स्रोत हैं-सरकार से मिलने वाले अनुदान, भवनों व गाड़ियाँ आदि पर कर, पशुओं व वस्तुओं पर चुंगी, यात्री कर, वाणिज्यिक फसलों पर कर, सरकार द्वारा अनुमोदित कोई भी राज्य कर, कर्ज, उपहार आदि। पंचायतों को भूमि, तालाब और बाजार से भी कुछ आये हो जाती है। कुछ विशेष प्रकार के कर लगाने के लिए पंचायतों को राज्य सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है। |
महत्त्व – आज के प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था के युग में ग्राम पंचायतों का बहुत महत्त्व है। ये संस्थाएँ जनता को जनतन्त्र की शिक्षा प्रदान करती हैं। नागरिक गुणों के विकास के लिए ग्राम पंचायतें प्रारम्भिक पाठशालाओं का काम करती हैं और जनता में अपने अधिकारों तथा स्वतन्त्रता की भावना को जाग्रत करने में सहायक होती हैं। ये जनता में सहज बुद्धि, न्यायशीलता, निर्णय-शक्ति और सामाजिकता का भी विकास करती हैं। ग्राम पंचायत स्थानीय स्तर की समस्याओं का समाधान समुचित रूप से कर लेती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई तथा मार्गों का निर्माण कराकर ये संस्थाएँ जनहित के कार्यों में संलग्न रहती हैं। गाँवों के आर्थिक विकास में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वस्तुतः ग्राम पंचायतें ग्राम सभाओं की कार्यकारिणी के रूप में कार्य करती हैं।