त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सर्वोच्च इकाई जिला पंचायत होती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पंचायत विधि (संशोधन) अधिनियम, 1994 पारित करके जिला परिषद् का नाम बदलकर जिला पंचायत कर दिया है। जिला पंचायत का नाम जिले के नाम पर होता है तथा प्रत्येक जिला पंचायत एक नियमित निकाय होती है। यह जिले के सम्पूर्ण ग्रामीण क्षेत्र का प्रबन्ध करती है।
गठन – जिला पंचायत के गठन में निम्नलिखित दो प्रकार के सदस्य होते हैं –
(क) निर्वाचित सदस्य निर्वाचित सदस्यों की सदस्य-संख्या राज्य सरकार द्वारा निश्चित की जाती है। साधारणतया 50,000 से अधिक की जनसंख्या पर एक सदस्य निर्वाचित किया जाता है। यह निर्वाचन वयस्क मतदान द्वारा होता है।
(ख) अन्य सदस्य – अन्य सदस्यों में कुछ पदेन सदस्य होते हैं, जो कि निम्नवत् हैं –
⦁ जनपद की सभी क्षेत्र पंचायतों के प्रमुख।
⦁ लोकसभा तथा विधानसभा के वे सदस्य जो उन निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनमें जिला पंचायत क्षेत्र का कोई भाग समाविष्ट है।
⦁ राज्यसभा तथा विधान परिषद् के वे सदस्य जो उस जिला पंचायत क्षेत्र में मतदाताओं के रूप में पंजीकृत हैं।
आरक्षण – प्रत्येक जिला पंचायत में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए नियमानुसार स्थान आरक्षित रहेंगे। आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, जिला अनुपात में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले कुल स्थानों की संख्या में यथासम्भव वही होगा, जो अनुपात इन जातियों, वर्गों की जनसंख्या का जिला पंचायत क्षेत्र की समस्त जनसंख्या में है। संशोधित प्रावधानों के अन्तर्गत पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण कुल निर्वाचित स्थानों की संख्या के 27% से अधिक नहीं होगा।
अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या के कम से कम एक-तिहाई स्थान; इन जातियों और वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे। प्रत्येक जिला पंचायत में निर्वाचित स्थानों की कुल संख्या के कम-से-कम एक-तिहाई स्थान; महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे।
योग्यता – जिला पंचायत का सदस्य निर्वाचित होने के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ अपेक्षित हैं –
⦁ ऐसे सभी व्यक्ति, जिनका नाम उस जिला पंचायत के किसी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचक नामावली में सम्मिलित है।
⦁ जो राज्य विधानमण्डल का सदस्य निर्वाचित होने की आयु सीमा के अतिरिक्त अन्य सभी योग्यताएँ रखता है।
⦁ जिसने 21 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
अधिकारी – प्रत्येक जिला पंचायत में दो अधिकारी होते हैं – अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, जिनका चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा गुप्त मतदान प्रणाली के आधार पर होता है। अध्यक्ष बनने के लिए यह आवश्यक है कि वह जिले में रहता हो, उसकी आयु 21 वर्ष से कम न हो तथा उसका नाम मतदाता सूची में हो। इन दोनों का निर्वाचन पाँच वर्ष के लिए किया जाता है। राज्य सरकार पाँच वर्ष की अवधि से पूर्व भी इन्हें पदच्युत कर सकती है। ये पद भी अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित होते हैं। अध्यक्ष पंचायतों की बैठकों का सभापतित्व करता है, पंचायत के कार्यों का निरीक्षण करता है एवं कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसका पद- भार उपाध्यक्ष सँभालता है।
इन अधिकारियों के अतिरिक्त छोटे-बड़े, स्थायी-अस्थायी अनेक वैतनिक कर्मचारी भी होते हैं, जो इन अधिकारियों के प्रति जिम्मेदार होते हैं तथा जिला पंचायत का कार्य निष्पादित करते हैं।
कार्य – जिले के समस्त ग्रामीण क्षेत्र की व्यवस्था तथा विकास का उत्तरदायित्व जिला पंचायत पर है। इस दायित्व को पूरा करने के लिए जिला परिषद् निम्नलिखित कार्य करती है –
⦁ सार्वजनिक सड़कों, पुलों तथा निरीक्षण-गृहों का निर्माण एवं मरम्मत करवाना।
⦁ प्रबन्ध हेतु सड़कों का ग्राम सड़कों, अन्तर्याम सड़कों तथा जिला सड़कों में वर्गीकरण करना।
⦁ तालाब, नाले आदि बनवाना।
⦁ पीने के पानी की व्यवस्था करना।
⦁ रोशनी का प्रबन्ध करना।
⦁ जनस्वास्थ्य के लिए महामारियों और संक्रामक रोगों की रोकथाम की व्यवस्था करना।
⦁ अकाल के दौरान सहायता हेतु राहत कार्य चलाना।
⦁ क्षेत्र समिति एवं ग्राम पंचायत के कार्यों में तालमेल स्थापित करना।
⦁ ग्राम पंचायतों तथा क्षेत्र समितियों के कार्यों का निरीक्षण करना।
⦁ प्राइमरी स्तर से ऊपर की शिक्षा का प्रबन्ध करना।
⦁ सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाना।
⦁ कांजी हाउस तथा पशु चिकित्सालय की व्यवस्था करना।
⦁ जन्म-मृत्यु का हिसाब रखना।
⦁ परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू करना।
⦁ अस्पताल खोलना तथा मनोरंजन के साधनों की व्यवस्था करना।
⦁ पुस्तकालय-वाचनालय का निर्माण एवं उनका अनुरक्षण करना।
⦁ कृषि की उन्नति के लिए उचित प्रबन्ध करना।
⦁ खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकना आदि।
आय के साधन – जिला पंचायत अपने कार्यों को पूर्ण करने के लिए इन साधनों से आय प्राप्त करती है –
⦁ हैसियत एवं सम्पत्ति कर
⦁ स्कूलों से प्राप्त फीस
⦁ अचल सम्पत्ति से कर
⦁ लाइसेन्स कर
⦁ नदियों के पुलों तथा घाटों से प्राप्त उतराई कर
⦁ कांजी हाउसों से प्राप्त आय
⦁ मेलों, हाटों एवं प्रदर्शनियों से प्राप्त आय तथा
⦁ राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान।