(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रयोगवाद के प्रवर्तक श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘हिरोशिमा’ द्वारा रचित ‘पूर्वा’ कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित हिरोशिमा’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं।
अथवा
शीर्षक का नाम-हिरोशिमा।
कवि का नाम-सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–परमाणु बम के रूप में मनुष्य ने मानो कृत्रिम सूरज की रचना कर ली है। इसके विस्फोट में सूरज के समान ही अत्यधिक ताप उत्पन्न होता है। अमेरिका ने जब हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया तो विस्फोट के समय उससे इतना ताप और प्रकाश उत्पन्न हुआ कि लगा आसमान से टूटकर सूरज ही धरती पर आ गिरा हो। उस समय मनुष्य भाप बनकर उड़ गया और उसकी राख तक शेष न रही। सूर्य में भी इतना ही ताप है कि उसके पास पहुँचकर कोई भी वस्तु ठोस अथवा द्रव अवस्था में नहीं रहती, वरन् वह गैस में परिवर्तित हो जाती है, ऐसा ही हिरोशिमा के परमाणु बम विस्फोट के समय हुआ था। जहाँ पर बम गिरा था, वहाँ की अधिकांश वस्तुएँ विशेषकरे पेड़-पौधे और जीव-जन्तु अत्यधिक ताप के कारण भाप (गैस) बनकर उड़ गये थे। यह वैज्ञानिक प्रगति के महाविनाश का प्रथम प्रमाण था।
(iii) मानव का रचा हुआ सूरज अणुबम है।
(iv) अणुबमरूपी सूरज ने मनुष्यों को उसी प्रकार जलाकार भस्म कर डाला जिस प्रकार सूर्य पानी को भाप बना डालता है।
(v) अणुबम की आग ने मानव तो मानव, पत्थर तक को जलाकर काला कर डाला, जो आज भी उस महाविनाश की गाथा के गवाह हैं।