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‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। 

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'ध्रुवयात्रा’ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी है। जैनेन्द्र जी मुंशी प्रेमचन्द की परम्परा के अग्रणी कहानीकार हैं। मनोवैज्ञानिक कहानियाँ लिखकर इन्होंने हिन्दी कहानी-कला के क्षेत्र में एक नवीन अध्याय को जोड़ा है। प्रस्तुत कहानी में इन्होंने मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण में समन्वित करके एक नवीन धारी को जन्म दिया और कहानी ‘ध्रुवयात्रा’ की रचना की। इस कहानी का सारांश निम्नवत् है राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुवे को जीतकर अर्थात् उत्तरी ध्रुव की यात्रा करके यूरोप के नगरों से बधाइयाँ लेते हुए भारत आ रहे हैं इस खबर को सभी समाचार पत्रों ने मुखपृष्ठ पर मोटे अक्षरों में प्रकाशित किया। उर्मिला, जो राजा रिपुदमन की प्रेमिका है और जिसने उनसे विवाह किये बिना उनके बच्चे को जन्म दिया है, ने भी इस समाचार को पढ़ा। उसने यह भी पढ़ा कि वे अब बम्बई पहुँच चुके हैं, जहाँ उनके स्वागत की तैयारियाँ जोर-शोर से की जा रही हैं। ………. उन्हें अपने सम्बन्ध में इस प्रकार के प्रदर्शनों में तनिक भी उल्लास नहीं है। ……….” इसलिए वे बम्बई में न ठहरकर प्रात: होने के पूर्व ही दिल्ली पहुँच गये। ……….. उनके चाहने वाले उन्हें अवकाश नहीं दे रहे हैं, ऐसा लगता है कि वे आराम के लिए कुछ दिन के लिए अन्यत्र जाएँगे।

राजा रिपुदमन को अपने से ही शिकायत है। उन्हें नींद नहीं आती है। वे अपने किये पर पश्चाताप कर रहे हैं। जब उर्मिला ने उनसे शादी के लिए कहा था तो उन्होंने परिवारीजनों के डर से मना कर दिया था। उनकी वही भूल आज उन्हें पीड़ा प्रदान कर रही है। वह उसके विषय में बहुत चिन्तित हैं।
दिल्ली में आकर वे आचार्य मारुति से मिलते हैं, जिनके बारे में उन्होंने यूरोप में भी बहुत सुन रखा था।

आचार्य मारुति तरह-तरह की चिकित्सकीय जाँच के परिणामों को ठीक बताते हुए उन्हें विवाह करने की सलाह देते हैं। लेकिन रिपुदमन स्वयं को विवाह के अयोग्य बताते हुए इसे बन्धन में बँधना कहते हैं। आचार्य मारुति उन्हें प्रेम-बन्धन में बँधने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि प्रेम का इनकार स्वयं से इनकार है।

अगले दिन राजा रिपुदमन उर्मिला से मिलते हैं और अपने बच्चे का नामकरण करते हैं। वे उर्मिला से समाज के विपरीत अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए क्षमा माँगते हैं और अपने व उर्मिला के सम्बन्धों को एक परिणति देना चाहते हैं। लेकिन उर्मिला मना करती है और उनसे सतत आगे बढ़ते रहने के लिए कहती है। वह पुत्र की ओर दिखाती हुई कहती है कि तुम मेरे ऋण से उऋण हो और मेरी ओर से आगामी गति के लिए मुक्त हो।

रिपुदमन उर्मिला को आचार्य मारुति के विषय में बताता है। वह उसे ढोंगी, महत्त्व को शत्रु और साधारणता का अनुचर बताती है। वह कहती है कि तुम्हारे लिए स्त्रियों की कमी नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारी प्रेमिका हूँ। और तुम्हें सिद्धि तक पहुँचाना चाहती हूँ, जो कि मृत्यु के भी पार है।।
रिपुदमन आचार्य मारुति से मिलता है तथा उसे बताता है कि वह उर्मिला के साथ विवाह करके साथ में रहने के लिए तैयार था, लेकिन उसने मुझे ध्रुवयात्रा के लिए प्रेरित किया और कुछ मेरी स्वयं की भी इच्छा थी। अब वह मुझे सिद्धि तक जाने के लिए प्रेरित कर रही है। आचार्य मारुति स्वीकार करते हैं कि उर्मिला उनकी ही पुत्री है। वे उसे विवाह के लिए समझाएँगे।

जब उर्मिला आचार्य के बुलवाने पर उनके पास जाती है तो वे उससे विवाह के लिए कहते हैं। वह कहती है। कि शास्त्र से स्त्री को नहीं जाना जा सकता उसे तो सिर्फ प्रेम से जाना जा सकता है। वे उसे रिपुदमन से विवाह के लिए समझाते हैं, लेकिन वह नहीं मानती। वह स्पष्ट कहती है कि मुक्ति का पथ अकेले का है। अन्त में आचार्य उर्मिला के ऊपर इस रहस्य को प्रकट कर देते हैं कि वे ही उसके पिता हैं। इस अभागिन को भूल जाइएगा’ यह कहती हुई वह उनके पास से चली जाती है।

रिपुदमन के पूछने पर उर्मिला बताती है कि वह आचार्य से मिल चुकी है। रिपुदमन उसके कहने पर दक्षिणी ध्रुव के शटलैण्ड द्वीप के लिए जहाज तय करते हैं। अब उर्मिला उनको रोकना चाहती है, लेकिन वे नहीं रुकते। वे चले जाते हैं। रिपुदमन की ध्रुव पर जाने की खबर पूरी दनिया को ज्ञात हो जाती है। उर्मिला को भी अखबारों के माध्यम से सारी खबर ज्ञात होती रहती है और वह इन्हीं कल्पनाओं में डूबी रहती है।

तीसरे दिन के अखबार में उर्मिला राजा रिपुदमन की आत्महत्या की खबर का एक-एक अंश पूरे ध्यान से पढ़ती है। अखबार वालों ने एक पत्र भी छापा था, जिसमें रिपुदमन ने स्वीकार किया था कि उनकी यह यात्रा नितान्त व्यक्तिगत थी, जिसे सार्वजनिक किया गया। मैं किसी से मिले आदेश और उसे दिये गये अपने वचन को पूरा नहीं कर पा रहा हूँ, इसलिए होशो हवाश में अपना काम-तमाम कर रहा हूँ। भगवान मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करे।’ यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।

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