इस्लाम के इतिहास में वालिद प्रथम का शासनकाल खिलाफत के विस्तार के लिए विख्यात है। इसी के शासनकाल में 711 ई० में बसरा के गवर्नर हेज्जाज और उसके दामाद मुहम्मद इब्न-उल कासिम ने दक्षिणी भारत और बलूचिस्तान से सिन्ध पर आक्रमण किया। इसके पूर्व मुहम्मद बिन कासिम ने 710 ई० में 6000 सीरियाई सैनिकों की सेना लेकर मकराने पर कब्जा जमा लिया। यहीं से इसने बलूचिस्तान होते हुए 711-712 ई० में सिन्धु की निचली घाटी और सिन्धु नदी के मुहाने की भूमि पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। वहाँ जिन नगरों को जीता गया, उनमें समुद्री बन्दरगाह अल-देबुल और अल-नीरून थे। अल-देबुल में चालीस घन फुट वाली एक बुद्ध की प्रतिमा स्थापित थी। मुहम्मद बिन कासिम की यह विजय उत्तर में दक्षिणी पंजाब स्थित मुल्तान तक की गई, जहाँ गौतम बुद्ध का पवित्र तीर्थस्थल है। इस विजय से दक्षिणी पाकिस्तान के सिन्ध पर इस्लाम का स्थायी प्रभुत्व स्थापित हो गया तथा शेष भारत दसवीं शताब्दी के अन्त तक, जबकि महमूद गजनवी ने आक्रमण किया, अप्रभावित रहा। इस तरह सेमेटिक इस्लाम और भारतीय बौद्ध धर्म के बीच उसी प्रकार स्थायी रूप से सम्पर्क स्थापित हो गया, जिस प्रकार उत्तर में इस्लाम का तुर्की संस्कृति के साथ सम्पर्क स्थापित हुआ था। इस प्रकार दक्षिण में सिन्ध और उत्तर में काशगर और ताशकन्द खिलाफत की सुदूरपूर्वी सीमा बन गई और आगे भी बनी रही।