अरब सभ्यता एवं संस्कृति मध्य युग में अरब सभ्यता का विकास पश्चिमी एशिया में अधिक हुआ, जिसका संक्षिप्त विवेचन निम्नवत् है
1. शासन व्यवस्था :
इस्लाम के प्रमुख नेता को ‘खलीफा’ कहा जाता था। पहले तीन खलीफाओं की राजधानी मदीना नगर था। उसके बाद यह कूफा नगर ले जाई गई, जो आधुनिक दमिश्क में स्थित था। अब्बासी खलीफाओं ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाया। तुर्की ने 1453 ई० में पूर्वी रोमन साम्राज्य का अन्त करके कुस्तुनतुनिया को अपनी राजधानी बनाया। आटोमान तुर्को के समय में खलीफा की शक्ति बहुत कम हो गई थी। खलीफाओं ने निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासक के रूप में अरब पर शासन किया। अब्बासी खलीफाओं ने जनहित के बहुत-से कार्य किए।
2. सामाजिक जीवन :
अरब साम्राज्य में चार प्रमुख वर्ग थे। प्रथम वर्ग में खलीफा, द्वितीय वर्ग में कुलीन, तृतीय वर्ग में विद्वान, लेखक, व्यापारी आदि सम्मिलित थे तथा चौथे निम्न वर्ग में किसान, दस्तकार तथा दास आते थे। इस समय दास-दासियों की संख्या बहुत अधिक थी। वे खुले बाजार में बेचे और खरीदे जाते थे। अरब समाज में स्त्रियों की दशा शोचनीय थी और उन्हें पर्दे में रहना पड़ता था। इस समय बहुविवाह, तलाक प्रथा और उपपत्नी प्रथा का प्रचलन था। अरब में पुरुष चौड़े पायजामें, कमीज, बड़ी जाकेट, काली पगड़ी, अंगरखा आदि वस्त्र पहनते थे। स्त्रियाँ रंग-बिरंगे सुन्दर वस्त्र धारण करती थीं। निम्न वर्ग में बुर्का (पूरे शरीर को ढकने वाला चोगा) पहनने की प्रथा थी। अरब लोग विभिन्न प्रकार के भोजन तथा पेयोंः जैसे—बनफशा, फालूदा, अंगूर की बेटी अर्थात् शराब आदि का उपयोग करते थे। शतरंज, चौपड़, पासे, चौगाने, पत्तेबाजी, घुड़दौड़, शिकार आदि उनके मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।
3. आर्थिक जीवन :
अरबों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और युद्ध करना था। अरब के लोग गेहूँ, चावल, खजूर, कपास, पटुआ, मूंगफली, नारंगी, ईख, गुलाब, तरबूज आदि की खेती करते थे। अरब में कम्बल, कढ़े वस्त्र, सिल्क, सूती व ऊनी वस्त्र, किमखाब, फर्नीचर, काँच के बर्तन, कागज आदि निर्माण के उद्योग-धन्धे प्रचलित थे। अरब कारीगर सोने-चाँदी व कीमती पत्थरों, जवाहरातों से जड़े सुन्दर व कलात्मक आभूषण बनाने में दक्ष थे। इस काल में अरब के भारत, चीन तथा अफ्रीका के देशों से व्यापारिक सम्बन्ध थे। बगदाद, बसरा, काहिरा, सिकन्दरिया मध्य युग के प्रमुख बन्दरगाह और व्यापारिक केन्द्र थे। मध्य युग में अरब के गलीचे, चमड़े की वस्तुएँ, सुन्दर तलवारें, धातु व काँच के बर्तन सारे संसार में विख्यात थे।
4. सांस्कृतिक जीवन :
इस्लामी अरब में शिक्षा का भी पर्याप्त विकास हुआ। अरब में पहला विद्यालय अबू हातिम ने 860 ई० में स्थापित किया। उस समय शिक्षा मस्जिदों और मदरसों में दी जाती थी। अद्द-अल-दौला ने शिराजी नगर में पहला पुस्तकालय बनवाया। उस समय बगदाद शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। वहाँ एक सौ से अधिक पुस्तक-विक्रेता थे। खलीफा मामून | ने बगदाद में एक उच्च शिक्षा का केन्द्र ‘बैत-अल-हिकमत’ स्थापित करवाया था। 1065-1067 ई० की अवधि में निजाम-उल-मुल्क ने अरब में ‘निजामिया मदरसे’ की स्थापना की थी। इससमय कुरान, हदीस, कानून, धर्मतन्त्र (कलाम), अरबी भाषा और साहित्य, ललित, साहित्य (अदब), गणित आदि की शिक्षा दी जाती थी। अरबों ने लिखने की एक अलंकृत शैली ‘खुशवती’ का आविष्कार किया था।
5. साहित्य :
उस समय के अरब साहित्यकारों में हमदानी (976-1008 ई०, ‘मकाना’ नाटक का लेखक), थालिवी (961-967 ई०), अगानी (गीतिकार), जहशियारी (‘आलिफ-लैला’ का पहला लेखक, 942 ई०), नवास (व्यंग्यकार, गजलों का लेखक), अबू हम्माम, अल बहुतरी (820-897 ई०), उमर खय्याम (रूबाइयों का रचयिता) जैसे महान् कवि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मध्यकालीन अरब साहित्य में ‘खलीफा हारून-अल-रशीद की कहानियाँ’, ‘उमर खय्याम की रूबाइयाँ’, ‘आलिफ-लैला’ की कहानी और ‘फिरादौसी का शाहनामा’ आज भी सारे संसार में प्रसिद्ध हैं।
6. चिकित्सा :
अरबों ने कई महान् चिकित्सक उत्पन्न किए, जिनमें जिबरील (नेत्र विज्ञान की पुस्तक ‘अल-लाइन’ का लेखक), अलराजी (865-925 ई०, तेहरान निवासी, ‘किताब-उल- असरार’ का लेखक), यूरोप में रहैजेस नाम से विख्यात, चेचक के इलाज का आविष्कारक), अली-अब्बास (‘अल-किताब अल मालिकी’ का लेखक, रोगियों के आहार व मलेरिया की चिकित्सा का अन्वेषक), इब्नसिना (950-1037 ई०, यूरोप में एविसेन्ना नाम से प्रसिद्ध, ‘अलशेख अल-रईस’ की उपाधि, 33 गंन्थों का रचयिता, महान चिकित्सक, क्षय रोग का अन्वेषक, दार्शनिक, भाषाशास्त्री, कवि, प्रमुख पुस्तक ‘किताब-उल-शिफा’) तथा याकूब (पशु चिकित्सक) आज भी सम्पूर्ण-जगत में विख्यात
7. खगोल विद्या और गणित :
अरब ने खगोल विद्या और गणित के क्षेत्र में भी विशेष उन्नति की। अरब खगोलशास्त्रियों ने अबू अहमद, अलबरूनी (973-1048 ई०, ‘हयाहब-अल-न जूम’ का लेखक) तथा उमर खय्याम (1048-1124 ई०, पंचांग का निर्माता) विशेष प्रसिद्ध हैं। मध्यकालीन अरब का विख्यात ज्योतिषी बल्ख का मूल निवासी अबू माशार था, जिसने ज्योतिष सम्बन्धी अनेक पुस्तकें लिखी थीं।
8. कलाओं में प्रगति :
अरब लोगों ने अनेक मस्जिदों व मदरसों का निर्माण करवाया। गजबान ने 838 ई० में बसरा में पहली बार मस्जिद बनवाई। जेरूसलम ने चट्टान का गुम्बद, अक्सा मस्जिद (निर्माता अल-मलिक), दमिश्क में उमय्यद मीनार मस्जिद (705 ई० निर्माता अल वालिद), हरा गुम्बद (निर्माता खलीफा मंसूर) आदि अरब स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने हैं। अब्बासी खलीफाओं ने अनेक राजमहलों और भवनों का निर्माण करवाया। बगदाद में बने शाही महल उस समय के अरब वैभव की जानकारी देते हैं। अरब में चित्रकला का भी विकास हुआ। उम्मैद तथा अब्बासी खलीफाओं द्वारा शहरी महलों की दीवारों पर कराई गई चित्रकारी दर्शनीय है। शाही गुम्बद पर घुड़सवार की आकृति (खलीफा मंसूर), शेरों, गरुड़ पक्षियों और समुद्री मछलियों के चित्र (खलीफा अमीन), कैसर आमरा के महल की दीवारों पर महिलाओं तथा शिकार के दृश्यों के चित्र आदि अरब चित्रकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। इस युग में प्रमुख चित्रकार अल हरीरी और अल-अल-अगानी थे। अल रेहानी इस समय का विख्यात सुलेखनकार था, जिसने ‘मुकलाह’ की रचना की थी। अरब संगीतकारों में इब्राहीम (खलीफा हारून-अल-रशीद का भाई), गजाली (‘अहिया-अल-उलम’ गजलों का संग्रह), खलीफा अल महदी (सियास या संगीत की पुस्तक), खलीफा अल बाथिक (वीणावादक) के नाम प्रमुख हैं। इस काल में सितार या गिटार तथा उरुयान (आर्गन) प्रमुख वाद्य यन्त्र थे। अल फराबी ने किताब उल मुसीफी अल कबीर’ तथा अल गजाली ने ‘अल समां’ नामक संगीत की पुस्तकें लिखी थीं।