अरब दार्शनिकों में अल किन्दी, अल फराबी, इब्नसिना, गजाली, अल-मारी, अलतौहिन्दी के नाम प्रमुख हैं। अरब दर्शन यूनानी दर्शन से प्रभावित था। अरब व यूनान की फिलॉसफी को ‘फलसफा’ कहते थे। अरब में इतिहास-लेखन का भी पर्याप्त विकास हुआ। इस युग के अरब इतिहासकारों में इब्न इशाक (मदीना निवासी, पैगम्बर की जीवनी का पहला लेखक), कृति ‘सिरात रसूल अल्लाह’, अल मुकफा (‘खुदायनामा’ का लेखक), कुतवाह (पहला अरब इतिहासकार, बगदाद निवासी, मृत्यु 889 ई०) कृति ‘किताब उल मारिफ’, अल याकूबी (भूगोलवेत्ता इतिहासकार), अल बालादुरी (‘अल बुल्दान’ तथा ‘अनसाब अल अशरफ’ पुस्तकों का लेखक), अल हकाम (‘फुतुह मित्र’ का लेखक), अल तबरी (838-923 ई०, ‘तारीख अल रसूल’ व अल मुलुक’ का लेखक), अल मसूदी (अरबों का हेरोडोट्स, कृति ‘अल तनवीह’ व ‘अल इशरफ’), अलबरूनी (‘किताब उल हिन्द’ या ‘तहकीके हिन्द’ का लेखक) के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अरब के भूगोलवेत्ताओं में फाह्यान(‘मजम अल बुल्दान’ या ‘भौगोलिक कोष’ का रचयिता), ख्वारिज्मी (‘सूरत अल गर्द’ या ‘पृथ्वी की शक्ल’ का लेखक), अल हमदानी (‘जजीरात अल अरब’ का लेखक) आदि के नाम सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। अरबों की देन-अरबों की विश्व सभ्यता को अनेक महत्त्वपूर्ण देन हैं। अरबों ने सर्वप्रथम प्रबुद्ध राजतन्त्र और राष्ट्रीयता की भावना का विकास किया। इस्लाम धर्म का प्रचार तथा प्रसार किया, सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन करने की प्रेरणा दी। संगठित सामाजिक जीवन की नींव डाली। भारत, चीन और अफ्रीका से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किए। चीनी, इत्र टिन्चर, कागज, काँच के बर्तन, गलीचे, चमड़े की कलात्मक वस्तुएँ, सुन्दर तलवारें व अन्य हथियार आदि संसार को प्रदान किए। इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरान शरीफ’ की रचना की। उन्होंने संसार को अरेबियन नाइट्स (आलिफ लैला की कहानियाँ), गुलिस्तां व बोस्तां (शेख सादी), शाहनामा (फिरदौसी) जैसे ग्रन्थ उपलब्ध कराए और चिकित्सा, दर्शन, खगोलविद्या, ज्योतिष, गणित, बीजगणित, गोलाकार ज्यामिति तथा कीमियागिरी में अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की और उनका ज्ञान संसार को दिया। अरबों ने बगदाद, दमिश्क, काहिरा, जेरूसलम, मक्का व मदीना में अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया और चित्रकला तथा संगीत कला का भी पर्याप्त विकास किया।