भारतीय संविधान ने संघात्मक शासन-प्रणाली की व्यवस्था की है। भारत में वर्षों तक अंग्रेजों का शासन रहा। भारत की अपनी परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि अंग्रेजों ने भी 1935 के अधिनियम द्वारा भारत में संघीय प्रणाली की व्यवस्था की थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् संविधान निर्माताओं ने इसी व्यवस्था को अपनाया। भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा निम्नलिखित कारणों से संघात्मक व्यवस्था को अपनाया गया –
⦁ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से एक उप-महाद्वीप के समान है जिसमें प्रशासनिक दृष्टिकोण से संघात्मक व्यवस्था ही उपयुक्त हो सकती थी।
⦁ भारतीय समाज में विभिन्न धर्म, भाषा, जाति, संस्कृति आदि पाए जाते हैं जिनमें सामंजस्य स्थापित करने के लिए संघात्मक व्यवस्था ही उचित समझी गई।
⦁ अंग्रेजों ने भारत को स्वतन्त्र करने के साथ-साथ देशी रियासतों को भी स्वतन्त्र कर दिया था। इन देशी रियासतों को भारत में मिलाने के लिए संघात्मक व्यवस्था ही उपयुक्त थी। इसके द्वारा । स्थानीय स्वायत्तता तथा राष्ट्रीय एकता दोनों लक्ष्यों की प्राप्ति हो जाती है।
⦁ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान सदैव संघात्मक व्यवस्था की माँग की थी।
⦁ भारतीयों को संघात्मक व्यवस्था का अनुभव भी था क्योंकि 1935 में भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत संघात्मक व्यवस्था ही अपनाई गई थी।
संविधान सभा में डॉ० बी०आर० अम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह एक संघीय संविधान है क्योंकि यह दोहरे शासन तन्त्र की व्यवस्था करता है जिसमें केंद्र में सघीय सरकार तथा उसके चारों ओर परिधि में राज्य सरकारें हैं जो संविधान द्वारा निर्धारित क्षेत्रों में सर्वोच्च सत्ता का प्रयोग करती हैं।