साम्प्रदायिकता को आदर्श नागरिक की प्रबलतम शत्रु माना गया है। साम्प्रदायिकता की भावना से ही सामाजिक जीवन में कटुता पैदा हो जाती है तथा शान्ति नष्ट हो जाती है। कभी-कभी इसके वशीभूत होकर व्यक्ति अपने धार्मिक एवं राजनीतिक समुदायों को इतना अधिक महत्त्व देते हैं कि वे समाज एवं राज्य के हितों की अपेक्षा हेतु तत्पर हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आदर्श नागरिकता की प्राप्ति असम्भव हो जाती है।