नागरिकता केवल एक कानूनी अवधारणा नहीं है। इसका समानता और अधिकारों के व्यापक उद्देश्यों से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध का सर्वसम्मत सूत्रीकरण अंग्रेज समाजशास्त्री टी० एच० मार्शल (1893-1981) ने किया है। अपनी पुस्तक ‘नागरिकता और सामाजिक वर्ग में मार्शल ने नागरिकता को किसी समुदाय के पूर्ण सदस्यों को प्रदत्त प्रतिष्ठा के रूप में परिभाषित किया है। इस प्रतिष्ठा को ग्रहण करने वाले सभी लोग प्रतिष्ठा में अन्तर्भूत अधिकारों और कर्तव्यों के मामले में समान होते हैं।
नागरिकता की मार्शल द्वारा प्रदत्त कुँजी धारणा में मूल संकल्पना ‘समानता’ की है। इसमें दो बातें अन्तर्निहित हैं। पहली यह कि प्रदत्त अधिकार और कर्तव्यों की गुणवत्ता बढ़े। दूसरी यह कि उन लोगों की संख्या बढ़े जिन्हें वे दिए गए हैं।
मार्शल नागरिकता में तीन प्रकार के अधिकारों को शामिल मानते हैं–नागरिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकार।
नागरिक अधिकार व्यक्ति के जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति की रक्षा करते हैं। राजनीतिक अधिकार व्यक्ति को शासन प्रक्रिया में सहभागी बनने की शक्ति प्रदान करते हैं। सामाजिक अधिकार व्यक्ति के लिए शिक्षा और रोजगार को सुलभ बनाते हैं। कुल मिलाकर ये अधिकार नागरिक के लिए सम्मान के साथ जीवन-बसर करना सम्भव बनाते हैं।
मार्शल ने सामाजिक वर्ग को ‘असमानता की व्यवस्था के रूप में चिह्नित किया। नागरिकता वर्ग पदानुक्रम के विभाजक परिणामों का प्रतिकार कर समानता सुनिश्चित करती है। इस प्रकार यह बेहतर सुबद्ध और समरस समाज रचना को सुसाध्य बनाता है।