1950 का दशक संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक दक्षिणी राज्यों में काली और गोरी जनसंख्या के बीच व्याप्त विषमताओं के विरुद्ध नागरिक अधिकार आन्दोलन के उत्थान का साक्षी रहा है। इस प्रकार की विषमताएँ इन राज्यों द्वारा पृथक्करण कानून के नाम से विख्यात ऐसे कानूनों द्वारा पोषित होती थीं, जिनसे काले लोगों को अनेक नागरिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित किया जाता था। उन कानूनों ने विभिन्न नागरिक सुविधाओं; जैसे-रेल, बस, रंगशाला, आवास, होटल, रेस्टोरेण्ट आदि में गोरे और काले लोगों के लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित कर रखे थे। इन कानूनों के कारण काले और गोरे बच्चों के स्कूल भी अलग-अलग थे।
इन कानूनों के विरुद्ध हुए आन्दोलन में मार्टिन लूथर किंग जूनियर अग्रणी काले नेता थे। उन्होंने इनके विरुद्ध अनेक अकाट्य तर्क प्रस्तुत किए। पहला, आत्म गौरव व आत्म-सम्मान के मामले में विश्व की प्रत्येक जाति या वर्ण का मनुष्य बराबर है। दूसरा, किंग ने कहा कि पृथक्करण राजनीति के चेहरे पर ‘सामाजिक कोढ़’ की तरह है क्योंकि यह उन लोगों को गहरे मनोवैज्ञानिक घाव देता है, जो ऐसे काननों के शिकार हैं।
किंग के तर्क दिया कि पृथक्करण की प्रथा गोरे समुदाय के जीवन की गुणवत्ता भी कम करती है। किंग इसे उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करते हैं। गोरे समुदाय ने अदालत के निर्देशानुसार कुछ सामुदायिक उद्यानों में काले लोगों को प्रवेश की आज्ञा देने के बजाय उन्हें बन्द करने का फैसला किया। इसी प्रकार कुछ बेसबॉल टीमें टूट गईं क्योंकि अधिकारी काले खिलाड़ियों को स्वीकार नहीं करना चाहते थे। तीसरे, पृथक्करण कानून लोगों के बीच कृत्रिम सीमाएँ खींचते हैं और उन्हें देश के व्यापक हित के लिए एक-दूसरे का सहयोग करने से रोकते हैं। इन कारणों से किंग ने बहस छेड़ी कि उन कानूनों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने पृथक्करण कानूनों के विरुद्ध शान्तिपूर्ण और अहिंसक प्रतिरोध का आह्वान किया।