नागरिकता की परिभाषा
नागरिकता उस स्थिति का नाम है, जिसके अन्तर्गत राज्य द्वारा व्यक्ति को नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं और व्यक्ति राज्य के प्रति विशेष निष्ठा रखता है। नागरिकता को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है
लॉस्की के अनुसार, “अपनी प्रशिक्षित बुद्धि को लोकहित के लिए प्रयोग करना ही नागरिकता है।”
गैटिल के अनुसार, “नागरिकता व्यक्ति की वह स्थिति है, जिसके कारण वह कुछ सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों का उपभोग करता है।
विलियम बॉयड के अनुसार, “भक्ति-भावना का उचित क्रम-निर्धारण ही नागरिकता है।’ नागरिकता की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट होता है कि नागरिकता जीवन की वह स्थिति है, जिसमें व्यक्ति किसी राज्य का सदस्य होने के नाते सभी प्रकार के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों का उपभोग करता है तथा राज्य के प्रति उसके अपने कुछ कर्तव्य भी सुनिश्चित होते हैं। इस प्रकार नागरिक होने की दशा का नाम ही नागरिकता है।
नागरिक के प्रकार
प्रत्येक राज्य में दो प्रकार के व्यक्ति निवास करते हैं
1. नागरिक (Citizen) और
2. विदेशी (Alien)
1. नागरिक
किसी राज्य में चार प्रकार के नागरिक होते हैं-
⦁ अल्पवयस्क नागरिक- ये एक निश्चित आयु से कम के व्यक्ति होते हैं और इन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं होता है। भारत में 18 वर्ष की आयु से कम के व्यक्ति इस श्रेणी में आते हैं।
⦁ वयस्क नागरिक- ये एक निश्चित आयु प्राप्त व्यक्ति होते हैं। भारत में यह आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है तथा इन्हें मताधिकार प्राप्त होता है।
⦁ नागरिकता-प्राप्त विदेशी- ये विदेशी होते हैं, परन्तु उन्हें कुछ शर्ते पूरी करने के पश्चात् नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
⦁ मताधिकार-रहित वयस्क नागरिक- इस वर्ग के अन्तर्गत ऐसे व्यक्ति सम्मिलित किए जाते हैं, जिनकी आयु नागरिकता प्राप्त करने की निश्चित आयु अधिक होती है, परन्तु किन्हीं विशेष कारणों से इन्हें मतदान का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
2. विदेशी
विदेशी वे होते हैं, जो किसी अन्य देश के मूल निवासी होते हैं और कुछ विशेष कारणों से कुछ समय के लिए दूसरे राज्य में निवास करते हैं। विदेशी निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं
⦁ स्थायी विदेशी- ऐसे विदेशी, जो अपना देश छोड़कर अन्य देशों में जाकर बस जाते हैं और उसी देश की नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं, ‘स्थायी विदेशी’ कहलाते हैं।
⦁ अस्थायी विदेशी अथवा विदेशी पर्यटक- ऐसे विदेशी, जो किसी विशेष कार्य के लिए कुछ समय के लिए दूसरे देश में जाते हैं और अपना कार्य पूरा करके स्वदेश लौट आते हैं, ‘अस्थायी विदेशी’ अथवा ‘विदेशी पर्यटक’ कहलाते हैं।
⦁ राजदूत एवं राजनयिक- ये विदेशी होते हैं, तथापि इन्हें अन्य विदेशियों की अपेक्षा अधिक | सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। किसी अन्य देश में ये अपने देश का कूटनीतिक एवं राजनयिक प्रतिनिधित्व करते हैं।
सम्बन्धों के आधार पर विदेशी निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-
⦁ विदेशी शत्रु- शत्रु देशों में चोरी-छिपे घुसपैठ करने वाले विदेशी, विदेशी शत्रु’ कहलाते हैं। प्रायः शत्रु देशों से आने वाले विदेशियों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जाती है और उन पर अनेक प्रतिबन्ध भी लगा दिए जाते हैं।
⦁ विदेशी मित्र- मित्र राष्ट्रों से आने वाले विदेशी, विदेशी मित्र’ कहलाते हैं। ये विदेशी अतिथि के रूप में आते हैं।