नागरिकता का तात्पर्य किसी राज्य में व्यक्ति का नागरिक होने की स्थिति से है। यह उस वैधानिक या कानूनी सम्बन्ध का नाम है जो व्यक्ति को उस राज्य के साथ, जिसका वह सदस्य है, सम्बद्ध करता है।
1. लॉस्की के शब्दों में, “अपनी प्रशिक्षित बुद्धि का लोकहित में प्रयोग ही नागरिकता है।”
2. गैटिल के अनुसार, “नागरिकता व्यक्ति की उस अवस्था को कहते हैं जिसके कारण वह अपने राज्य में राष्ट्रीय और राजनीतिक अधिकारों का उपयोग कर सकता है और अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार रहता है।
इस प्रकार किसी राज्य और उसके नागरिकों के उन आपसी सम्बन्धों को ही ‘नागरिकता’ कहा जाता है जिससे नागरिकों को राज्य की ओर से सामाजिक और राजनीतिक अधिकार मिलते हैं। तथा वे राज्य के प्रति कुछ कर्तव्यों का पालन करते हैं।
नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ
नागरिकता प्राप्त करने की विधियों को निम्नलिखित दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
1. जन्मजात नागरिकता की प्राप्ति तथा
2. राज्यकृत नागरिकता की प्राप्ति।
1. जन्मजात नागरिकता की प्राप्ति
जन्मजात नागरिकता निम्नलिखित तरीकों से प्राप्त होती है-
⦁ रक्त अथवा वंश सम्बन्धी सिद्धान्त- जन्मजात नागरिकता प्राप्त करने की प्रथम विधि रक्त सम्बन्ध है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को जन्म किसी भी स्थान पर क्यों न हो, उसे अपने पिता की नागरिकता प्राप्त होती है। फ्रांस, इटली एवं स्विट्जरलैण्ड में इस सिद्धान्त को अपनाया गया है। यह सिद्धान्त न्यायसंगत और विवेकयुक्त है।
⦁ जन्म-स्थान सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे की नागरिकता का निर्णय उसके जन्म-स्थान के आधार पर किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को उसी देश की नागरिकता प्राप्त होती है, जिस देश की भूमि पर उसका जन्म होता है। अर्जेण्टाइना, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका में नागरिकता का यह सिद्धान्त लागू है। यह सिद्धान्त नागरिकता का निर्णय करने में तो बहुत सरल है, किन्तु तर्कसंगत नहीं है।
⦁ दोहरा नियम- कई देशों में दोनों सिद्धान्तों को अपनाया गया है। इंग्लैण्ड, फ्रांस एवं अमेरिका में रक्त-सम्बन्धी सिद्धान्त तथा जन्म-स्थान सिद्धान्त दोनों प्रचलित हैं। दोहरे नियम के सिद्धान्त के अनुसार जो बच्चा अंग्रेज दम्पती से उत्पन्न हुआ हो, चाहे बच्चे का जन्म भारत में हो, अंग्रेज कहलाता है। उसे अपने पिता की नागरिकता प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त यदि किसी विदेशी की इंग्लैण्ड में सन्तान पैदा होती है, तो उसे इंग्लैण्ड की भी नागरिकता प्राप्त होगी।
इस सिद्धान्त में यह दोष है कि एक बच्चा एक समय में दो देशों का नागरिक बन सकता है, किन्तु वयस्क होने पर वह यह निर्णय कर सकता है कि वह किस देश की नागरिकता को अपनाये और किसका परित्याग करे।
2. राज्यकृत नागरिकता की प्राप्ति
राज्यकृत नागरिकता नियमानुसार विदेशियों को प्रदान की जाती है। ऐसे व्यक्ति जिन्हें नागरिकता जन्मजात सिद्धान्त से प्राप्त नहीं होती, वरन् उस राज्य की ओर से प्राप्त होती है, जिसके कि वे मूल नागरिक नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने देश को छोड़कर किसी दूसरे देश में बस जाती है और कुछ समय पश्चात् उस देश की नागरिकताको प्राप्त कर लेता है तो उस व्यक्ति को राज्यकृत नागरिकं कहीं जाता है। नागरिकता देना अथवा न देना राज्य पर निर्भर करती है।
इस सिद्धान्त के अनुसार नागरिकता की प्राप्ति निम्नलिखित रूपों में की जाती है
⦁ निश्चित समय के लिए- यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश में जाकर एक निश्चित अवधि तक निवास करे तो वह प्रार्थना-पत्र देकर वहाँ की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। इंग्लैण्डे और अमेरिका में निवास की अवधि 5 वर्ष है, जब कि फ्रांस में 10 वर्ष। भारत में निवास की अवधि 4 वर्ष है।
⦁ विवाह- यदि कोई स्त्री किसी दूसरे देश के नागरिक से विवाह कर लेती है तो उसे अपने पति के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। भारत का नागरिक पुरुष यदि इंग्लैण्ड की नागरिक महिला के साथ विवाह कर लेता है तो उस महिला को भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। जापान में इसके विपरीत नियम है। यदि कोई विदेशी व्यक्ति जापान की नागरिक महिला से विवाह कर लेता है तो उस व्यक्ति को जापान की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
⦁ सम्पत्ति खरीदना- सम्पत्ति खरीदने से भी नागरिकता प्राप्त हो जाती है। ब्राजील, पीरू और
मैक्सिको में यह नियम प्रचलित है। यदि कोई विदेशी पीरू में सम्पत्ति खरीद लेता है तो उसे वहाँ की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
⦁ गोद लेना- जब एक देश का नागरिक व्यक्ति किसी दूसरे देश के नागरिक बच्चे को गोद ले | लेता है तो गोद लिये जाने वाले बच्चे को अपने पिता के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
⦁ सरकारी नौकरी- कई देशों में यह नियम है कि यदि कोई विदेशी वहाँ सरकारी नौकरी कर ले तो उसे वहाँ की नागरिकता मिल जाती है। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई भारतीय इंग्लैण्ड में सरकारी नौकरी कर लेता है तो उसे इंग्लैण्ड की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
⦁ विद्वत्ता द्वारा- कई देशों में विदेशी विद्वानों को नागरिक बनने के लिए विशेष सुविधाएँ दी | जाती हैं। विदेशी विद्वानों के निवास की अवधि दूसरे विदेशियों के निवास की अवधि से कम | होती है। फ्रांस में वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के लिए वहाँ की नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक वर्ष का निवास हीं पर्याप्त है।
⦁ दोबारा नागरिकता की प्राप्ति- यदि कोई नागरिक अपने देश की नागरिकता छोड़कर दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है तो उसे दूसरे देश का नागरिक माना जाता है, परन्तु यदि वह चाहे तो कुछ शर्ते पूरी करके पुन: अपने देश की नागरिकता भी प्राप्त कर सकता है।
भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ
निम्नलिखित विधियों में से किसी एक आधार पर भारतीय नागरिकता प्राप्त की जा सकती है
1. जन्म या वंश के आधार पर- 1992 ई० में संसद ने सर्वसम्मति से एक विधेयक पारित कर ‘भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955′ को संशोधित किया है। 1992 ई० के पूर्व भारत के बाहर जन्मे किसी व्यक्ति को रक्त-सम्बन्ध या वंश के आधार पर भारत की नागरिकता तभी प्राप्त होती थी, जब कि उसका पिता भारत का नागरिक हो। अब व्यवस्था यह की गयी है कि भारत से बाहर जन्मे ऐसे किसी भी व्यक्ति को भारत की नागरिकता प्राप्त होगी; जिसका पिता या माता, उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों। इस प्रकार अब नागरिकता के प्रसंग में बच्चे की माता को पिता के ‘समकक्ष स्थिति प्रदान कर दी गयी है।
2. पंजीकरण द्वारा- निम्नलिखित श्रेणी के व्यक्ति पंजीकरण के आधार पर नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं-
⦁ जो व्यक्ति पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें अब भारत में कम-से-कम 5 वर्ष निवास करना होगा। पहले यह अवधि 6 माह थी।
⦁ ऐसे भारतीय जो विदेशों में जाकर बस गये हैं, भारतीय दूतावासों में आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे।
⦁ विदेशी स्त्रियाँ, जिन्होंने भारतीय नागरिक से विवाह कर लिया हो, आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगी।
⦁ राष्ट्रमण्डलीय देशों के नागरिक, यदि वे भारत में ही रहते हों या भारत सरकार की नौकरी , कर रहे हों, आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
3. देशीयकरण द्वारा- देशीयकरण द्वारा नागरिकता तभी प्रदान की जाती है, जब कि सम्बन्धित व्यक्ति कम-से-कम 10 वर्ष तक भारत में रह चुका हो। पहले यह अवधि 5 वर्ष थी। ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986′ जम्मू-कश्मीर तथा असम सहित भारत के सभी राज्यों पर लागू होता है।
4. भूमि विस्तार द्वारा- यदि किसी नवीन क्षेत्र को भारत में शामिल किया जाए तो वहाँ की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाएगी। जैसे 1961 ई० में गोआ तथा 1975 ई० में सिक्किम को भारत में सम्मिलित किये जाने पर वहाँ की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो गयी।
नागरिकता का लोप
जिस तरह नागरिकता को प्राप्त किया जा सकता है, उसी तरह कुछ स्थितियों में नागरिकता को खोया भी जा सकता है। निम्नलिखित स्थितियों में प्रायः नागरिकता का लोप हो जाता है
⦁ लम्बे समय तक अनुपस्थिति- कई देशों में यह नियम है कि यदि वहाँ का नागरिक लम्बे समय तक देश से बाहर रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई फ्रांसीसी नागरिक लगातार 10 वर्ष की अवधि से अधिक फ्रांस से बाहर रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है।
⦁ विवाह- महिलाएँ विदेशी नागरिकों से विवाह करके अपने देश की नागरिकता खो देती हैं।
⦁ विदेश में सरकारी नौकरी- यदि एक देश का नागरिक अपने देश की सरकार की आज्ञा प्राप्त | किये बिना किसी दूसरे देश में सरकारी नौकरी कर लेता है तो उसे अपने देश की नागरिकता छोड़नी पड़ती है।
⦁ स्वेच्छा से नागरिकता का त्याग- कई देशों की सरकारें अपने नागरिकों को उनकी इच्छा के अनुसार किसी देश का नागरिक बनने की आज्ञा प्रदान कर देती हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अपनी जन्मजात नागरिकता त्यागकर अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं।
⦁ सेना से भाग जाने पर- यदि कोई नागरिक सेना से भागकर दूसरे देश में चला जाता है तो | उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।
⦁ दोहरी नागरिकता प्राप्त हो जाने पर- जब किसी व्यक्ति को दो राज्यों की नागरिकता प्राप्त हो जाती है तब उसे एक राज्य की नागरिकता छोड़नी पड़ती है।
⦁ देश-द्रोह- जब कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध विद्रोह अथवा क्रान्ति करता है तो उसकी नागरिकता छीन ली जाती है, परन्तु देश-द्रोह के आधार पर उन्हीं नागरिकों की नागरिकता को छीना जा सकता है जो राज्यकृत नागरिक हों।
⦁ गोद लेना- यदि कोई बच्चा किसी विदेशी द्वारा गोद ले लिया जाए तो बच्चे की अपने देश की नागरिकता समाप्त हो जाती है और वह अपने नये माता-पिता के देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है।
⦁ विदेशी सरकार से सम्मान प्राप्त करना- यदि कोई नागरिक अपने देश की आज्ञा के बिना किसी विदेशी सरकार द्वारा दिये गये सम्मान को स्वीकार कर लेता है तो उसे उसकी मूल नागरिकता से वंचित कर दिया जाता है।
⦁ पागल, दिवालिया अथवा साधु- संन्यासी होने पर- यदि कोई व्यक्ति पागल, दिवालिया अथवा साधु-संन्यासी हो जाता है तो उसका नागरिकता का अधिकार समाप्त हो जाता है।